जिले के भैदया,लंभुआ,बल्दीराय,धनपतगंज,दुबेपुर,समेत किसान केले की खेती कर रहे हैं। सेवरा गांव के किसान चंद्रशेखर उपाध्याय कई साल से केले की खेती कर रहे हैं। उनका कहना विकल्पों की पैदावार है इसको बेच कर भी परेशानी नहीं होती है व्यापारी घर से ही खरीद कर ले जाते हैं। खास बात यह है कि केले की खेती में ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है केले का पौधा जुलाई माह में 2 से ढाई मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। उद्यान विभाग में ऑनलाइन आवेदन करने पर केले की खेती के लिए अनुदान भी मिला था।
विकल्पों की पैदावार

गन्ने की अधिक पैदावार के लिए किसान अपना रहे शराब और डिटर्जेंट

Meerut Bureau

मेरठ ब्यूरो
Updated Mon, 15 Jul 2019 01:57 AM IST

farming

महंगे दौर में किसान मान रहे कीटनाशक का सस्ता विकल्प
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इन तथ्यों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं
मोहम्मद शाह आलम
सरूरपुर। क्षेत्र के किसान गन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए पानी में शराब और डिटर्जेंट मिलाकर छिड़काव कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे गन्ने की फसल पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फसल में कीट नहीं लगने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है। कुछ किसान ईख में महंगे कीटनाशकों के बजाय ऑक्सीटोसिन भी यूरिया में मिलाकर डाल रहे हैं।
दूसरे प्रदेशों की बढ़ती पैदावार को देखकर मेरठ देहात क्षेत्र के किसान महंगाई के इस दौर में सस्ते कीटनाशक ईजाद कर रहे हैं। ये किसान इन दिनों नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। वे अपने खेतों में देशी शराब और ऑक्सीटोसिन का छिड़काव कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे गन्ने की पैदावार बढ़ जाती है। वहीं यह गन्ने के लिए कीटनाशक का काम करता है। किसान वीरेन्द्र कुमार मिर्जापुर, जाकिर दमगढ़ी, मोनू बाड़म समेत अन्य का मानना है कि महंगे कीटनाशक खरीदना मुश्किल होता जा रहा है। गन्ने का भुगतान चीनी मिलें एक साल में विकल्पों की पैदावार कर रही हैं। ऐसे में सस्ते कीटनाशक के रूप में किसान इन विकल्पों को अपनाकर फायदा उठा रहे हैं। रासना गांव निवासी किसान सुमित शर्मा एवं मुकेश बताते हैं कि पांच बीघा गन्ने की फसल में छिड़काव के लिए देशी शराब के एक क्वार्टर की जरूरत पड़ती है। बताया कि इसके प्रयोग से कम समय में गन्ने की लंबाई बढ़ने से ज्यादा उत्पादन होने पर फायदा हुआ। ग्राम डालमपुर निवासी संसार सिंह का कहना है कि जब पहली बार इसके बारे में सुना तो थोड़ा झिझक हुई परंतु इस्तेमाल करने का फैसला किया। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से गन्ने के खेत में शराब का छिड़काव किया तो इसके बेहतर परिणाम सामने आए। शराब के विकल्पों की पैदावार साथ कुछ मात्रा में डिटर्जेंट पाउडर और ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन मिलाने से ईख को बैक्टीरिया और फंगसजनित रोगों से बचाव में मदद मिलती है। वहीं, किसानों का मानना है कि आलू का आकार बढ़ने के साथ कम समय में ज्यादा पैदावार होती है।
वहीं, कृषि विभाग के अधिकारी किसानों की इस राय से बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि गन्ना या आलू के ज्यादा उत्पादन में शराब की कोई भूमिका नहीं होती है। हालांकि किसान इसके इस्तेमाल को लेकर उत्साहित हैं। उधर, कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों में शराब के छिड़काव को पूरी तरह गलत बताया है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे मिट्टी की उर्वरता पर प्रभाव पड़ सकता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ के वैज्ञानिक डॉ. राकेश सेंगर का कहना है कि फसल उत्पादन बढ़ाने में शराब और डिटर्जेंट के इस्तेमाल का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। किसान अपना पैसा बेवजह बर्बाद कर रहे हैं। इसके लिए हॉर्टिकल्चर अधिकारी को जांच करने के लिए कहा है। इसके अतिरिक्त किसानों को जागरूक करने के लिए निर्देश दिया है। वहीं, हॉर्टिकल्चरिस्ट का कहना है कि शराब में मौजूद अल्कोहल पांच से दस मिनट के अंदर ही उड़ जाता है। इसके प्रयोग से फसलों के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इससे बेहतर है कि किसान नीम की पत्तियों को उबाल कर कीटनाशक विकल्पों की पैदावार के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।

सुल्तानपुर के बल्दीराय में केले की खेती मुफीद: परंपरागत खेती छोड़ केले की पैदावार से मुनाफा कमा रहे किसान, बताया- गेहूं और धान की अपेक्षा मिल रहा अधिक लाभ

केले की खेती दिखाते किसान। - Dainik Bhaskar

सेहत के लिए फायदेमंद केला अब किसानों की माली हालात सुधारने में मददगार साबित हो रहा है। किसानों को केले की खेती खूब भा रही है। केले की खेती से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। जिले से लेकर गांव तक किसान प्रमुख रूप से धान गेहूं व विकल्पों की पैदावार गन्ना की खेती करते हैं।

कुछ सालों से किसानों को परंपरागत खेती से अपेक्षित फायदा नहीं हो रहा है। गेहूं और धान की फसलों में लागत ज्यादा लग रही है और उसका दाम कम मिल रहा है।गन्ने की फसलों का भी यही हाल है। गन्ने का मूल्य का भुगतान समय से नहीं हो पाता। इसके चलते किसानों का इन फसलों से मोहभंग हो रहा है। ऐसे हालात में किसान दूसरे विकल्प तलाश रहे थे। ऐसे ही विकल्पों में केले की खेती भी है। किसानों विकल्पों की पैदावार को केले की खेती से काफी फायदा हो रहा है।

प्राकृतिक खेती ही विकल्प

वैज्ञानिकों का साफ मानना है कि दुनियाभर में बढ़ते पर्यावरण संकट को कम करने में जैविक या प्राकृतिक खेती एक उपचारक की भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में प्राकृतिक खेती बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है।

अखिलेश आर्येंदु: वैज्ञानिकों का साफ मानना है कि दुनियाभर में बढ़ते पर्यावरण संकट को कम करने में जैविक या प्राकृतिक खेती एक उपचारक की भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में प्राकृतिक खेती बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है। धीरे-धीरे दक्षिण, मध्य भारत और उत्तर भारत में भी यह किसानों में लोकप्रिय हो रही है।

केंद्र सरकार भी इसे बढ़ावा देने में लगी है। लेकिन जिस गति से इसे बढ़ना चाहिए, उस गति से इसे बढ़ाने में कामयाबी मिल नहीं रही है। इसके लिए और भी ठोस प्रयास करने की जरूरत है। कुछ सालों से केंद्र सरकार ने नीम परत वाली यूरिया को बढ़ावा देने के लिए तमाम कवायदें शुरू की हैं। इसकी खूबी को लेकर केंद्र सरकार प्रचार भी खूब करती रही है। पर नीम यूरिया से क्या खाद्यान्नों में बढ़ रहे जहरीले तत्त्वों में कमी आई है?

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केले की खेती दिखाते किसान। - Dainik Bhaskar

सेहत के लिए फायदेमंद केला अब किसानों की माली हालात सुधारने में मददगार साबित हो रहा है। किसानों को केले की खेती खूब भा रही है। केले की खेती से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। जिले से लेकर गांव तक किसान प्रमुख रूप से धान गेहूं व गन्ना की खेती करते हैं।

कुछ सालों से किसानों को परंपरागत खेती से अपेक्षित फायदा नहीं हो रहा है। गेहूं और धान की फसलों में लागत ज्यादा लग रही है और उसका दाम कम मिल रहा है।गन्ने की फसलों का भी विकल्पों की पैदावार यही हाल है। गन्ने का मूल्य का भुगतान समय से नहीं हो पाता। इसके चलते किसानों का इन फसलों से मोहभंग हो रहा है। ऐसे हालात में किसान दूसरे विकल्प तलाश रहे थे। ऐसे ही विकल्पों में केले की खेती भी है। किसानों को केले की खेती से काफी फायदा हो रहा है।

2300 हेक्टेयर में होगी मक्के की खेती

Lucknow Bureau

लखनऊ ब्यूरो
Updated Mon, 29 Nov 2021 12:54 AM IST

Maize will be cultivated in 2300 hectares

बाराबंकी। कैश-क्रॉप के रूप में मेंथा की खेती करने वाले किसानों को मेंथा बाजार में मंदी ने जोर का झटका दिया है। महंगाई के दौर में किसानों की लागत व मेहनत तक नहीं निकल पा रही है। इससे वे काफी मायूस हैं। ऐसे में किसानों की आय बढ़ाने को लेकर मेंथा के विकल्प के रूप में 2300 हेक्टेयर में शंकर मक्के की खेती कराने की योजना कृषि विभाग की है।
इसे बढ़ावा देने के लिए किसानों को 52 सौ रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से करीब सवा करोड़ रुपये का अनुदान सरकार की ओर से विभाग देगा। किसान रबी व जायद के सीजन में मक्के की खेती से बेहतर उत्पादन कर आत्मनिर्भर बनेंगे।
जिले में रबी व जायद के सीजन में करीब सवा दो लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है। कृषि विभाग के सलाहकार कैलाश नाथ पांडेय ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास मिशन के तहत अब रबी के सीजन में नौ सौ व जायद के सीजन में 14 सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में शंकर मक्का की खेती कराई जाएगी।
मेंथा के विकल्प के रूप में कैश-क्रॉप (नकदी फसल) के रूप में किसान विकल्पों की पैदावार मक्के की खेती करें। इसको बढ़ावा देने के उन्हें सरकार की ओर से अनुदान भी दिया जाएगा। इसे लेकर सभी ब्लॉकों का अलग-अलग लक्ष्य तय कर राजकीय बीज भंडार पर मक्के का हाईब्रीड बीज भी उपलब्ध करा दिया गया है।
उन्होंने बताया कि किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर मक्के का हाईब्रीड बीज मिलेगा। वहीं फास्फेट को पौधों तक पहुंचाने के लिए तरल रसायन व नमी सूचक यंत्र भी अनुदान पर मिलेगा। इच्छुक किसानों को अधिकतम दो हेक्टेयर व न्यूनतम एक एकड़ क्षेत्रफल में मक्के की खेती करने के लिए अनुदान योजना का लाभ मिल सकेगा।
प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। बोआई के बाद तीन माह में जहां भुट्टे आने शुरू हो जाते हैं, वहीं पांच माह में फसल पककर तैयार हो जाती है। पैदावार सामान्यत: 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
किसानों की नकदी फसल बनी मेंथा का रेट करीब तीन वर्षों से एक हजार का आंकड़ा पार नहीं कर पा रहा है। मेहनत व लागत मूल्य न निकलने से किसानों का मोहभंग होने लगा है। ऐसे में बढ़ती मांग के मद्देनजर सरकार किसानों के मुनाफे के लिए मक्के की खेती मक्के को बढ़ावा देने जा रही है।
बाजार में 18 सौ से दो हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकने वाले मक्के की मांग मुर्गीदाना, मछली दाना, नमकीन व पापकॉर्न विकल्पों की पैदावार आदि बनाने के लिए बढ़ी है। इस लिहाज से मक्के की खेती किसानों के लिए फायदे की खेती साबित होगी।
उपकृषि निर्देशक अनिल कुमार सागर ने बताया कि जिले में नकदी फसल मेंथा के विकल्प के रूप में शंकर मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि किसानों की आय बढ़े। किसानों को मक्के की खेती पर प्रति हेक्टेयर 52 सौ रुपये का अनुदान दिया जाएगा। ब्लॉकवार लक्ष्य तय कर राजकीय बीज भंडारों पर दो कंपनियों के बीज उपलब्ध करा दिए गए हैं।

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