Dibbi Lingeshwar Swami Mandir एक रहस्य।
Dibbi Lingeshwar Swami Mandir एक रहस्यमयी और गोपनीय मंदिर जो कि दक्षिण भारत में स्थित है, इसको इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया लेकिन इस आर्टिकल के माध्यम से विकल्पों का मुख्य रहस्य विकल्पों का मुख्य रहस्य इस मंदिर से संबंधित जानकारी और रहस्य आप जान पाएंगे।
डिब्बी लिंगेश्वर स्वामी मंदिर (राम लिंगेश्वर स्वामी मंदिर) कहां हैं-
Dibbi Lingeshwar Swami Mandir सरिपल्ली गांव, विजयनगरम जिला, आंध्रप्रदेश, भारत में स्थित हैं।
डिब्बी लिंगेश्वर स्वामी मंदिर सरीपल्ली गाँव में स्थित है जो चंपावती नदी के किनारे विजयनगरम शहर से 16 किमी दूर है।
सरिपल्ली गांव के निकट एक छोटी पहाड़ी पर रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर है। इस मन्दिर को राम लिंगेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं।
मंदिर का निर्माण-
मंदिर का निर्माण सातवीं और दसवीं शताब्दी के बीच कलिंग द्वारा किया गया था, जिसमें मंदिर की दीवारों पर सुंदर मूर्तियां हैं।
यह माना जाता था कि Dibbi Lingeshwar Swami Mandir देवतों द्वारा बनाया गया था, यह सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक था और प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों के तहत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। लेकिन फिर भी आज तक लोगों के अंधविश्वास की वजह से इस रहस्यमयी मंदिर के अंदर लोग नहीं जाते हैं।
यह एक खूबसूरत जगह है जो आम और काजू के खेतों से भरी हुई है।
आपको पहाड़ी पर बौद्ध स्मारकों के कोई निशान नहीं मिलेंगे क्योंकि वे मिट्टी से ढंके हुए थे, रामलिंगेश्वर मंदिर के पुजारी को ईंटें मिलीं जब वह पहाड़ी पर वृक्षारोपण कर रहे थे, उन्होंने अनजाने में इस जगह को खोदा था। इस मंदिर के आस पास और भी बड़ा रहस्यमई इतिहास छुपा पड़ा हो सकता है।
Dibbi Lingeshwar Swami Mandir मंदिर से जुड़ी मिथ्या-
प्राचीन समय से ही यहां पर रहने वाले लोगों की मान्यता है कि अंदर स्थित शिवलिंग की रक्षा सरपा राजा (सांप राजा) द्वारा की जाती है।
जो विकल्पों का मुख्य रहस्य कि सत्य है लेकिन दुर्भाग्य से इस कीमती मंदिर में कुछ धार्मिक मान्यताओं की वजह से स्थानीय लोगों द्वारा पूजा नहीं की जाती है। जबकि यह मंदिर कई सदियों पुराना है।
Dibbi Lingeshwar Swami Mandir का निर्माण और कलाकारी देखकर लगता हैं जैसे स्वयं भगवान यहां मौजूद हैं। इस मंदिर के अंदर मौजूद सर्प ने अभी तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।
अगर आप यहां घूमने का प्लान बना रहे हैं तो आपको यह छोटी जानकारी अवश्य होनी चाहिए,जो आपकी मदद करेगी-
स्थान का नाम: डीब्बी लिंगेश्वर स्वामी मंदिर (रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर)
समय: सुबह 5 बजे से लेकर दिन में 12 बजे तक और शाम को 5 बजे से लेकर – 8 बजे तक आप यहां जा सकते हैं।
विशेष त्यौहार: महा शिवरात्रि और पुरा कार्तिक मास
परिवहन: स्वयं विकल्पों का मुख्य रहस्य का वाहन सबसे अच्छा विकल्प है या फिर आप विजयनगरम बस द्वारा भी यहां तक पहुंच सकते हैं। शहर से यह 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। अगर आप रेल्व
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म, संख्य-नामनिरूपण पुराणों के नाम, संख्या और क्रम में मतभेद है । नाम संख्या आदि प्रतिपादक पुराण ही इस संबंध में एक दूसरे से असंगति रखते हैं । विष्णुपुराण में दिए गए पुराणों के मामक्रम के अनुसार चाह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, विकल्पों का मुख्य रहस्य नारदीय, माकंडेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिग, वराहस्याम्द, वामन, मे, मस्य, गरुड़ ओर झह्माण्ड ऐसा कम है । किन्तु इस नामक्रम में वायुपुराण का कहीं भी निर्देश नहीं है । समालोचकों की दृष्टि से वायुपुराण शिवपुराण के अन्तर्गत है या उसी का विकल्प रूप है । वंगला-विश्वकोपकार ने दोनों नाम से एक ही शिवपुराण की विषयसूची दी है । किन्तु आनन्दाश्रम संस्कृत ग्रंथावली में छपे हुए वायुपुराण की विषयसूची शिवपुराण के अन्तर्गत दी हुई वायवीय संहिता की विषयमूची से भिन्न है । इसलिए शिवपुराण के अन्तर्गत वायुपुराण को मानना ठीक नही । हाँ शिवपुराण का विकल्प रूप मानने से वायुपुराण की गणन अष्टादश पुराणो की कम संख्या सूची में की जा सकती है । मत्स्यपुराण में दी हुई पुराणों की उपक्रमणिका में शिवपुराण के स्थान पर वायुपुराण का जो विकल्पों का मुख्य रहस्य उल्लेख है, उससे वायुपुराण के नाम पड़ने का कारण स्पष्ट होने के साथ ही उसका पुराण होना भी सिद्ध होता है । पुराणों के आन्तरिक रहस्य पुराणों को वेदों के साथ प्रादुर्भात ईश्वरीय निःश्वास तर्कहीन श्रद्धा अवश्य स्वीकार करती है । किन्तु बुद्धिवादी ताक अपनी अन्वीक्षण शक्ति द्वारा जब वेद और पुराण का तुलनारमक अध्ययन करता है तो उसे भी पुराणों के आन्तरिक रहस्य और वेदों के साथ पुराणों के सम्बन्ध स्पष्ट ज्ञात हो जाते हैं । श्रीमदभागवत (१४२८) में लिखा है कि "“भारतस्यपदेशेन ह्याम्नायार्थश्च दशितः " अर्थात् पुराणों में भारत के इतिहास के व्याज से वेदों का रहस्य खोला गया है । इसी आशय को स्वीकार करते हुए महाभारत में भी स्पष्ट कर दिया गया है कि ‘‘इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृहयेत्” विकल्पों का मुख्य रहस्य अर्थात् इतिहास पुराणों से वेदों का भर्म जाना जाता है । यदि हम देदों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं, तो सचमुच उनमें ऐतिहासिक सामग्री के स्थान पर भूगोल और खगोल का ही प्रमुख वर्णन है । वेदों में जो ऐतिहासिक सामग्री बतायी जाती है वह अधिकतर पुराणों के कारण ही वस्तुत: चेदों के चमत्कारपूर्ण आलंकारिक वर्णनों को पुराणकारों ने ऐतिहासिक पुरुषों और घटनाओ के साथ मिलाकर उनका रहस्य उस साधारण जनता तक पहुंचाया जो वेदों की सूक्ष्म, गंभीर, रहस्यमयी बातें नही समझ सकती थीं और जो "स्त्रीशूद्रद्विजवन्धूनां श्रयी न श्रुतिगोचरा" की व्यवस्था से वेद पढ़ने और सुनने के अधिकारी नहीं थे। इस चातुर्य का परिणाम वेदों के हक में चुरा सिद्ध हुआ ।' लोगों में यह भ्रांत धरण समा गयी कि वेदों में पुरूरवा नहुष, ययाति, गंगा, यमुना, व्रज, अयोध्या आदि वंशों, नदियों, स्थानो और युद्धों का वर्णन है । उदाहरण के लिए विश्वामित्र और मेनका वेद के चामत्कारिक'पदार्थ है। इधर दुष्यन्त और शकुन्तला पौराणिक मनुष्य है । पर दोनो को मिलाने से भरत को इन्द्र के यहाँ जाना पड़ा। इन्द्र भी आकाशीय चामत्कारिक पदार्थ
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