निष्कर्ष इस प्रकार की नीति अपनाने में कुल बिक्री बढ़ती है और ग्राहकों को अपने इच्छा के अनुरूप वस्तु मिल जाती है लेकिन इससे प्रशासनिक लागत, उत्पादन लागत, संग्रह लागत, प्रवर्तन लागत व विक्रय लागत में वृद्धि होती है। यह रीति-नीति ग्राहक अभिमुखी है लेकिन यह सदा ही लाभ अभिमुखी हो ऐसा सम्भव नहीं है। इसका लाभ अभिमुखी होना। इस बात पर निर्भर करता है कि लागतों की तुलना में बिक्री किस अनुपात में बढ़ती है।
बाजार विभक्ति करण से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार विभक्तिकरण किसी बाजार को छोटे-छोटे भागों में बांटने की रीति-नीति है। बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है, जैसे – ग्राहकों की आयु, आय, शिक्षा, लिंग आदि। बाजार विभक्तिकरण में वर्तमान एवं भावी ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं, रूचियों एवं पसन्द के आधार पर समजातीय समूहों में विभाजित किया जाता है।
इसे सुनेंरोकेंबाजार विभाजन को विभिन्न देशों को सजातीय समूहों में विभाजित करने की तकनीक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। बाजार विभाजन की अवधारणा के पीछे तर्क इस तथ्य पर आधारित है कि वैश्विक बाजार को नीतियों के एकल सेट के आधार पर नहीं परोसा जा सकता है।
लक्षित दर्शकों से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंएक लक्षित दर्शक एक प्रकाशन, विज्ञापन, या अन्य संदेश के इच्छित दर्शक या पाठक हैं जो विशेष रूप से उक्त इच्छित दर्शकों के लिए तैयार किए गए हैं। में विपणन और विज्ञापन , यह के एक विशेष समूह है उपभोक्ताओं को पूर्व निर्धारित भीतर लक्षित बाजार , लक्ष्य या किसी विशेष विज्ञापन या संदेश से प्राप्तकर्ताओं के रूप में पहचान।
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बाजार विभक्तिकरण क्या है? उद्देश्य एवं महत्व
bazar vibhakti karan ka arth paribhasha uddeshya mahatva;किसी वस्तु के सभी ग्राहकों में समानता नही होती है उसके स्वभाव, गुण प्रकृति, आयु, रहन सहन, का स्तर आदि में अन्तर होता है। इसी कारण एक निर्माता एक ग्राहकों समुदाय के लिए एक प्रकार की वस्तु बनाता है, और दूसरे प्रकार के ग्रहकों के समुदाय के लिए दूसरे प्रकार की। इसी प्रकार वह अपने बाजार को विभिन्न खण्डों में विभाजित कर लेता है इस प्रकार का खण्डीकरण बाजार ही बाजार विभक्तिकरण कहलाता है।
संक्षेप में," किसी वस्तु के बाजार कों विभिन्न बाजारों व उप-बाजार अथवा खण्डों एवं उप-खण्डों में विभाजित किया जाना ही बाजार विभक्तिकरण कहलाता है।
बाजार विभक्तिकरण की परिभाषा (bazar vibhakti karan ki paribhasha)
आर.एस.डाबर के शब्दों में," ग्राहकों का समूहीकरण अथवा बाजार को टुकडों में बांटना ही बाजार विभक्तिकरण कहलाता है।''
राबर्ट के अनुसार,'' बाजार विभक्तिकरण बाजारों को टुकडों में बांटने की रीति-नीति है ताकी उस पर विजय प्राप्त की जा सकें।''
विलियम जे. स्टेण्टन के अनुसार,'' बाजार विभक्तिकरण से आशय किसी उत्पाद के सम्पूर्ण विजातिय बाजार को अनेक उप-बाजार या उप-खण्डों में इस प्रकार विभाजित करने से है। कि प्रत्येक उप-बाजार उप-खण्डों में सभी महत्वपूर्ण पहलूओं में समजातीयता हो।''
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार ,'' बाजार विभक्तिकरण से आशय एक विजातीय बाजार के सापेक्षिक समजातीय लक्षणों वाले छोटे ग्राहक खण्डों में जिन्हें फर्म सन्तुष्ट कर सकती है विभक्त करने से है।''
बाजार विभक्तिकरण के उद्धेश्य (bazar vibhakti karan ke uddeshya)
बाजार विभक्तिकरण के उद्देश्य इस प्रकार से है--
1. ग्राहकों की रूचियां क्रय आदतों आवश्यकताओं प्राथमिकताओं का पता लगाना।
2. विपणन रीति-नीतियां एवं लक्ष्य निर्धारित करना।
3. फर्म के कार्यो को ग्राहकोन्मुखी बनाना।
4.बाजार विभक्तिकरण का चौथा उद्धेश्य यह पता लगाना है कि किन क्षेत्रों पर प्रयास करने पर नये ग्राहक बनाये जा बाजार विभक्तिकरण क्या है? सकते है।
5. बाजार विभक्तिकरण में विभिन्न ग्राहक समूहो के क्रय सम्भाव का पता लगाना है जिसके अध्ययन से विपणन लक्ष्य निर्धारित किये जा सकते है।
6. ग्राहकों को उनकी समान प्रकृति स्वभाव व गुणों के आधार पर समजातीय वर्गों में बांटना जिससे कि प्रत्येक वर्ग के लिए उपयुक्त विपणन कार्यक्रम बनाये जा सकते है।
7. बाजार विभक्तिकरण का अंतिम उद्धेश्य संस्था बाजार विभक्तिकरण क्या है? को अभिमुखी बनाना है। जिससे ग्राहकों को सन्तुष्ट करना व लाभ प्राप्त करना है।
बाजार विभक्तिकरण का महत्व (bazar vibhakti karan ka mahatva)
1. प्रतिस्पर्धा में सहायक
संस्था बाजार विभक्तिकरण के द्वारा अलग-अलग खण्डों में प्रतिस्पर्धियों बाजार विभक्तिकरण क्या है? की नीतियों का अध्ययन करके उसके प्रत्युतर में अपनी प्रभावी विपणन रीति-नीतियां निर्धारित कर सकती है। यह बाजार विभक्तिकरण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में सहायक होती है।
2. विपणन क्रियाओं का मूल्यांकन
बाजार विभक्तिकरण के द्वारा प्रत्येक उप-खण्डों के लिए पृथक विपणन कार्यक्रम बनाया जा सकता है, और उसके बाद विपणन क्रियाओं की प्रभावशीलता का आसानी से मूल्यांकन किया जा सकता है। अन्य विपणन क्रियायें कैसे असफल रही है। किन बाजारों उप-खण्डों में विपणन क्रियायें असफल रही है।
3. उत्पाद निष्ठा
विपणन जो किसी बाजार विभक्तिकरण के लिए आवश्यकतानुसार विपणन मिश्रण तैयार करता है। वह ग्राहकों में उत्पाद-निष्ठा बाजार विभक्तिकरण क्या है? उत्पन्न करने में सफल होते है। इस प्रकार वे प्रतिस्पर्धा उत्पादों के सामने ठहर पाते है।
What is market segmentation/market segmentation
सामान्यतः किसी वस्तु के सभी ग्राहक में समानता नहीं होता है उनके स्वभाव गुण प्रक्रिति क्यूं रहन सहन का सत आदि में आनतर होता है इसी कारणवश एक निर्माता एक प्रकार के ग्राहक समुदाय के लिए एक प्रकार की वस्तु बनाता है
और दूसरे प्रकार के ग्राहक के समुदाय के लिए दूसरे प्रकार की इस प्रकार वह अपने बाजार को विभिन्न खंडों में विभाजित करता है याह बाजार खंडीकरण कहलाता है किसी वस्तु या सेवा के समस्त बाजार को उपबाजारों में विभाजित करने की प्रक्रिया को बाजार खंडीकरण कहा जाता है प्रत्येक उपबाजार दूसरे उपचार से भिन्न होता है परंतु एक बाजार के समस्त ग्राहक समान होते हैं
फिलिप कोटलर. के शब्दों में एक बाजार को समान प्रकार के ग्राहकों की उप उपजातियों में विभाजन करने को बाजार खंडीकरण कहते हैं जिसमें कि किसी उपजाति को चुना जा सके और विशिष्टी विपणन मिश्रण के साथ बाजार को लक्ष्य बनाकर उस तक पहुंचा जा सके बाजार को विभिन्न समुदायों मैं बांटने को बाजार विभक्तिकरण (Market segmentation) कहते हैं
बाजार विभक्तिकरण एवं विपणन रीति-नीति पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
किसी वस्तु के सभी क्रेता एक से नहीं होते हैं इसलिए एक विक्रेता अपनी विपणन रणनीति में अन्तर कर सकता है। यह अन्तर बाजार खण्ड के आधार पर हो सकता है। इस सम्बन्ध में निम्न तीन में से कोई भी रीति अपनायी जा सकती है
(1) भेदभावहीन विपणन रीति-नीति-इस नीति को अपनाने वाली संस्थाएँ विभिन्न ग्राहकों में अन्तर नहीं करती हैं और अपना एक ही विपणन कार्यक्रम अपनाती है। इसका अर्थ यह है कि निर्माता के द्वारा केवल एक ही प्रकार की वस्तु का निर्माण एवं विक्रय किया जाता है। इसमें इस बात का अधिक ध्यान रखा जाता है कि ग्राहकों में किन-किन बातों में समानताएँ पायी जाती हैं। इसीलिए विज्ञापन अपीलें वैसी ही बनायी जाती हैं जिनसे अधिकांश ग्राहकों की समानता का पता चलता हो।
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