राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा का 10 दिसंबर, 2022 को मानव अधिकार दिवस पर संदेश

“मानव अधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर सभी को बधाई, जिसे वर्ष 1950 से हर साल 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक फैलता है और आयोग घोषणा, यूडीएचआर के स्‍मरणोत्‍सव के रूप में मनाया जाता है। यह घोषणा मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के महत्व पर वैश्विक सहमति को चिह्नित करते हुए इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ और अमृत काल में प्रवेश कर रही है।

यूडीएचआर के सिद्धांतों को याद रखने और मजबूत करने के लिए यह दिन मनाया जाता है कि प्रत्‍येक मनुष्‍य चाहे उसकी नस्ल, रंग, धर्म, लिंग, भाषा, राजनीतिक या अन्य मत, राष्ट्रीय या सामाजिक उत्‍पत्ति, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति कैसी भी हो, समान पैदा होता है और उसे जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के अधिकार जन्‍म से ही प्राप्त होते हैं। यद्यपि, अधिकारों के उपभोग के लिए यह आवश्‍यक है कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी करें।

आज मानव अधिकारों की विभिन्न नई चिंताओं के बीच, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण दुनिया भर में कई मानव अधिकारों के उल्लंघन का एक प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है, जिसके लिए सभी हितधारकों को, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सभी की वृद्धि और विकास के हित में समान फैलता है और आयोग रूप से योगदान देने की आवश्यकता है।

एनएचआरसी, भारत का आदर्श वाक्य - "सर्वे भवंतु सुखिन:", यानी सभी सुखी हो, पृथ्वी पर जीवन का सार है। यह परम्‍परा 'वसुधैव कुटुम्बकम' की प्राचीन भारतीय आस्था में भी निहित है, अर्थात विश्व एक परिवार है। आइए, हम सब एकजुट होकर एक बेहतर दुनिया बनाने के अपने सर्वोत्कृष्ट प्रयास में मानव अधिकारों और भावनाओं को महत्व देकर शांति और सद्भाव की तलाश के इस मार्ग पर चलें।

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के लिए तैयार होने लगी जमीन, शीतकालीन सत्र में आ सकता है बिल

माना जा रहा है कि यह पूरी पहल उच्च शिक्षा को एक ही नियामक के दायरे में लाने से ही जुड़ी है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक यूजीसी और एआईसीटीई के साथ ही एनसीटीई (नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन) को भी एक साथ जोड़ने की तैयारी है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अलग-अलग नियामकों के बीच बिखरी उच्च शिक्षा अब जल्द ही एक नियामक के दायरे में होगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में इसके लिए फैलता है और आयोग प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन की दिशा में तेजी से पहल हुई है। अघोषित रूप से एक ट्रायल शुरू किया गया है, जिसमें उच्च शिक्षा के दो बड़े नियामक (यूजीसी और एआईसीटीई) पिछले चार महीने से एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। साथ ही दोनों नियामकों के प्रमुख की जिम्मेदारी भी एक ही व्यक्ति को दी गई है।

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पूरी उच्च शिक्षा को एक दायरे में रखा गया

माना जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित आयोग से जुड़ा विधेयक भी पेश किया जा सकता है। इसकी तैयारी जोरों पर है। शिक्षा मंत्रालय ने इसके साथ ही उच्च शिक्षा के लिए हाल ही में जो क्वालीफिकेशन फ्रेमवर्क तैयार किया है, उनमें भी पूरी उच्च शिक्षा को एक दायरे में रखा गया है। इसमें छात्रों को पसंद के विषय के चयन की छूट दी गई है। साथ ही वह एक साथ दो कोर्स भी कर सकेंगे। फैलता है और आयोग हालांकि इनमें से दोनों ही आनलाइन या आफलाइन हो सकता है, लेकिन इनकी पढ़ाई का समय अलग-अलग होना चाहिए।

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यूजीसी और एआईसीटीई के साथ एनसीटीई को एक साथ जोड़ने की तैयारी

माना जा रहा है कि यह पूरी पहल उच्च शिक्षा को एक ही नियामक के दायरे में लाने से ही फैलता है और आयोग जुड़ी है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक यूजीसी और एआईसीटीई के साथ ही एनसीटीई (नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन) को भी एक साथ जोड़ने की तैयारी है। इस दिशा में भी काम किया जा रहा है। गौरतलब है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मौजूदा समय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) सहित करीब 14 नियामक काम करते हैं। इनमें फैलता है और आयोग तकनीकी शिक्षा, शिक्षक शिक्षा, कौशल विकास से जुड़ा शिक्षा परिषद आदि शामिल हैं।

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ऐसे में एक ही विश्वविद्यालय या उच्च शिक्षण संस्थान को अलग-अलग कोर्सों को संचालित करने के लिए इन सभी नियामकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। साथ ही इन सभी नियमों को पूरा करने का अलग-अलग तरीके से दबाव होता है। हालांकि प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के दायरे से मेडिकल और कानून से जुड़ी फैलता है और आयोग शिक्षा को अलग रखा गया है।

प्रस्तावित आयोग का कुछ इस तरह होगा स्वरूप

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित आयोग के दायरे में चार स्वतंत्र संस्थाएं भी गठित होंगी। इनमें पहली संस्था- राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद ( एनएचईआरसी) होगी। यह उच्च शिक्षा के लिए एक रेगुलेटर की तरह काम करेगा, जिसके दायरे में चिकित्सा एवं विधिक शिक्षा को छोड़ बाकी सभी उच्च शिक्षा शामिल होगी।

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दूसरी संस्था फैलता है और आयोग -राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) होगी। यह नैक की जगह लेगी, जो सभी उच्च शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन करेगी।

तीसरी संस्था -उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) होगी जो उच्च शिक्षण संस्थानों की फंडिंग का काम देखेगी। अभी उच्च शिक्षण संस्थानों की फंडिंग का काम यूजीसी के ही पास है।

चौथी संस्था- सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी) होगी जो नए-नए शिक्षा कार्यक्रमों को तैयार करने और उन्हें लागू करने का काम देखेगी।

राष्ट्रीय संस्थान/संगठन

भारत के विधि आयोग ने अभी तक विभिन्न मुद्दों पर 277 प्रतिवेदन (Reports) प्रस्तुत किये हैं, उनमें से कुछ अद्यतन प्रतिवेदन हैं: प्रतिवेदन संख्या 277 अनुचित तरीके से मुक़दमा चलाना (अदालत की गलती): कानूनी उपाय

  • प्रतिवेदन संख्या 276 – कानूनी संरचना: जुए और खेलों में दाँव जिसके तहत भारत में क्रिकेट में लगने वाले दाँव (Betting) भी शामिल है
  • प्रतिवेदन संख्या 275 – कानूनी संरचना: BCCI के रू-ब-रू सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
  • प्रतिवेदन संख्या 274 – न्यायालय की अवमानना अधिनियम, फैलता है और आयोग 1971 की समीक्षा
  • प्रतिवेदन संख्या 273 – हिरासत में यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का कार्यान्वयन
  • प्रतिवेदन संख्या 272 – भारत में ट्रिब्यूनलों की वैधानिक संरचनाओं का आकलन
  • प्रतिवेदन संख्या 271 – ह्यूमन DNA प्रोफाइलिंग
  • प्रतिवेदन संख्या 270 – विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण या अस्वीकार किया जा सकता है। इन सिफ़ारिशों पर कार्यवाही उन मंत्रालयों/विभागों पर निर्भर है जो सिफारिशों की विषय वस्तु से संबंधित हैं।

विधि आयोग में सुधारों की दरकार

20वें विधि आयोग के अध्यक्ष ए.पी. शाह ने विधि आयोग में कई सुधारों का समर्थन किया था, इनमें से प्रमुख हैं.

  • विधिक हैसियत: इस निकाय को स्वायत्त एवं सक्षम बनाने के लिये यह आवश्यक है कि इसे विधिक आयोग का दर्जा दिया जाए। अधिकांश देशों, विशेष रूप से पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में विधि आयोग एक विधिक निकाय है। यदि इस आयोग को विधिक दर्जा दिया जाता है तो यह केवल संसद के प्रति जवाबदेह होगा, न कि कार्यपालिका के प्रति।
  • निरंतरता: किसी भी आयोग की कार्यक्षमता में सुधार हेतु निरंतरता बेहद आवश्यक होती है। विधि आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष का है, प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति और अगले आयोग की नियुक्ति के मध्य काफी अंतराल होता है। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था, किंतु 22वें विधि आयोग का गठन अभी तक नहीं किया जा सका है।
  • नियुक्ति: विधि आयोग के सदस्यों की नियुक्ति केवल अध्यक्ष से परामर्श के पश्चात् ही की जानी चाहिये। वर्तमान व्यवस्था में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कई बार भेदभाव और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं।
  • स्वायत्तता: वर्तमान व्यवस्था में विधि सचिव तथा विधायी विभाग के सचिव विधि आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। इन आधिकारियों की आयोग में उपस्थिति इसकी स्वायत्तता को प्रभावित करती है। उपरोक्त आधिकारियों को इस आयोग का सदस्य नहीं होना चाहिये। हालाँकि यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव होते फैलता है और आयोग हैं तथा विधि आयोग इस मंत्रालय के अधीन एवं सहयोग से कार्य करता है।

अब तक तीन-वर्षीय कार्यकाल वाले कुल 21 विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं, जिनमें से 21वें विधि आयोग की कार्यावधि 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गई, लेकिन 22वें विधि आयोग का गठन अभी तक नहीं हो पाया है।

वैश्वीकरण और सतत विकसित हो रही सोसाइटियों के इस युग में, विधि आयोग उन क़ानूनों की पहचान करता है, जो कि वर्तमान वातावरण के अनुरूप नहीं हैं और जिनमें बदलाव की आवश्यकता है। यह नागरिकों की शिकायतों के तेज़ी से समाधान के लिये कानून के क्षेत्र में समुचित उपाय सुझाता है और कानूनी प्रक्रिया से गरीबों को लाभ देने के लिये सभी आवश्यक कदम उठाता है। वर्तमान समय में इसकी मौजूदगी और अधिक प्रासंगिक हो गई है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा का 10 दिसंबर, 2022 को मानव अधिकार दिवस पर संदेश

“मानव अधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर सभी को बधाई, जिसे वर्ष 1950 से हर साल 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, यूडीएचआर के स्‍मरणोत्‍सव के रूप में मनाया जाता है। यह घोषणा मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के महत्व पर वैश्विक सहमति को चिह्नित करते हुए इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ और अमृत काल में प्रवेश कर रही है।

यूडीएचआर के सिद्धांतों को याद रखने और मजबूत करने के लिए यह दिन मनाया जाता है कि प्रत्‍येक मनुष्‍य चाहे उसकी नस्ल, रंग, धर्म, लिंग, भाषा, राजनीतिक या अन्य मत, राष्ट्रीय या सामाजिक उत्‍पत्ति, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति कैसी भी हो, समान पैदा होता है और उसे जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के अधिकार जन्‍म से ही प्राप्त होते हैं। यद्यपि, अधिकारों के उपभोग के लिए यह आवश्‍यक है कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी करें।

आज मानव अधिकारों की विभिन्न नई चिंताओं के बीच, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण दुनिया भर में कई मानव अधिकारों के उल्लंघन का एक प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है, जिसके लिए सभी हितधारकों को, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सभी की वृद्धि और विकास के हित में समान रूप से योगदान देने की आवश्यकता है।

एनएचआरसी, भारत का आदर्श वाक्य - "सर्वे भवंतु सुखिन:", यानी सभी सुखी हो, पृथ्वी पर जीवन का सार है। यह परम्‍परा 'वसुधैव कुटुम्बकम' की प्राचीन भारतीय आस्था में भी निहित है, अर्थात विश्व एक परिवार है। आइए, हम सब एकजुट होकर एक बेहतर दुनिया बनाने के अपने सर्वोत्कृष्ट प्रयास में मानव अधिकारों और भावनाओं को महत्व देकर शांति और सद्भाव की तलाश के इस मार्ग पर चलें।

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