डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?

फोटो सौजन्य: यूएनएफसीसीसी

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ममी और और पिरामिड के लिए दुनिया भर में मशहूर खूबसूरत देश मिस्र में 6 से लेकर 20 नवंबर तक बीता एक पखवाड़ा दशकों तक याद रखा जाएगा। इस पखवाड़े के दौरान धरती के सबसे बड़े संकट जलवायु परिवर्तन पर बातचीत चली और अंत में मान लिया गया कि जो गरीब देश जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत कम जिम्मेवार हैं, वही सबसे ज्यादा बर्बादी का दंश झेल रहे हैं, इसलिए अमीर देशों को उनकी भरपाई करनी चाहिए। दरअसल इस पखवाड़े में मिस्र के इस शहर में क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप-27) यानी संयुक्त राष्ट्र संघ के 27वें सालाना जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में दुनिया के लगभग सभी देशों के 35 हजार से अधिक लोग जुटे, जिनमें सरकारी अधिकारी, पर्यवेक्षक, नागरिक समाज व अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि थे। इस सम्मेलन को इसलिए डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? ऐतहासिक माना जा रहा है, क्योंकि इसमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान व क्षति की पूर्ति के लिए एक कोष (लॉस एंड डैमेज फंड, एलडीएफ) के गठन का फैसला लिया गया (देखें, हालात ने किया मजबूर,)।

सम्मेलन की समाप्ति के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त सचिव और कॉप-27 में हानि और क्षति के लिए भारत के वार्ताकार ने डाउन टू अर्थ से कहा, “जलवायु परिवर्तन वार्ता में यह एक ऐतिहासिक दिन डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? है, जब 30 वर्षों के बाद यह स्वीकार किया गया है कि बढ़ती आपदाओं के कारण उन समुदायों और देशों को नुकसान और क्षति (आर्थिक और गैर-आर्थिक दोनों) का सामना सबसे अधिक करना पड़ रहा है, जो इसके लिए कम से कम जिम्मेवार हैं। इसके लिए दशकों से उत्सर्जन करने वाले देश जिम्मेवार है। इस तरह की नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए एक फंडिंग व्यवस्था बनाने के प्रयास शुरू हो गए हैं”।

हालांकि नुकसान एवं क्षति कोष के बारे में विस्तृत विवरण के बारे में कुछ खास सामने नहीं आ पाया। जैसे कि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि नुकसान एवं क्षति की गणना कैसे की जाएगी (देखें, अदृश्य लागत, पेज 43)? इस कोष के लिए पैसा कहां से आएगा? यह भी साफ नहीं है कि यह कोष यूएनएफसीसीसी के अधीन आएगा या नहीं? इस कोष का फायदा किन देशों को मिलेगा? हालांकि विकासशील देशों के समूह, जी77 की मांग है कि प्राकृतिक आपदाओं से सर्वाधिक नुकसान झेलने वाले कमजोर देशों को कोष से मुआवजा दिया जाए। वहीं, यूरोपीय संघ जैसे समूहों ने चीन जैसे बड़े उत्सर्जकों की ओर इशारा करते हुए कोष में भुगतान करने वालों का दायरा व्यापक बनाने की बात की। एंटीगुआ और बारबुडा, मॉरीशस और जमैका सहित कई द्वीप राष्ट्रों ने चीन और भारत से भविष्य में किसी भी नुकसान और क्षति निधि का भुगतान करने का आह्वान किया।

6 नवंबर को जब कॉप-27 के एजेंडे में नुकसान व क्षति को आधिकारिक तौर पर शामिल किया गया था तो उसे ही एक बड़ी उपलब्धि माना गया था, लेकिन 18 नवंबर को जब कॉप का समापन होना था, तब तक नुकसान एवं क्षति को लेकर कोई सहमति न बनते देख यह कयास लगाए जाने लगे थे कि विकासशील देश और अल्प विकसित देशों को इस बार भी निराशा का सामना करना पड़ेगा। हालात यह बन गए कि कॉप अध्यक्ष समीर शौकरी को यूएनएफसीसीसी की विश्वसनीयता दांव पर लगती नजर आई। इसके बाद वार्ता का सिलसिला दो दिन तक चला और आखिरकार यूरोपीय संघ की पहल पर नुकसान और क्षति कोष बनाने के फैसले पर मुहर लग पाई।

समापन के बाद भारत ने नुकसान एवं क्षति फंड का रास्ता साफ होने पर प्रसन्नता जताई, लेकिन साथ ही कहा कि भारत इस फंड में कोई धनराशि नहीं देगा, बल्कि फंड में अपना हिस्सा मांगेगा। हालांकि भारत जलवायु शमन (मिटिगेशन) में कृषि को जोड़ने से भी खुश नहीं है। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेेंद्र यादव ने कहा कि दुनिया को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य हासिल करने के लिए किसानों पर बोझ नहीं लादना चाहिए। यह पहला कॉप सम्मेलन था, जहां कृषि के लिए समर्थित एक विशेष दिवस आयोजित किया गया। कृषि क्षेत्र को कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार माना जाता है और इस वजह से इसे जलवायु समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया।

सम्मेलन में नार्वे, भारत सहित कई देश ये मांग कर रहे थे कि तेल और गैस सहित सभी जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए, लेकिन खाड़ी देशों और रूस जैसे देशों की वजह से यह संभव नहीं है। दरअसल, भारत चाहता था कि जिस तरह उस पर कोयले के इस्तेमाल को रोकने का दबाव बनाया जा रहा है, उसी तरह सभी देशों पर कम उत्सर्जन करने वाले जीवाश्म ईंधन जैसे तेल व गैस के इस्तेमाल पर रोक लगाने का दबाव बनाया जा सके।

सम्मेलन के दौरान भारत ने अपनी दीर्घकालीन कम-कार्बन विकास रणनीति पेश की। इसमें सात क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार करना और ग्रिड को मजबूत बनाना, जीवाश्म ईंधन स्रोतों का तर्कसंगत डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? उपयोग, ई-वाहनों को प्रोत्साहन, पेट्रोल व डीजल में जैव-ईंधन के मिश्रण में निरंतर वृद्धि, ऊर्जा दक्षता का विस्तार और भावी ईंधन के तौर पर ग्रीन हाइड्रोजन को महत्व देना शामिल था।

इसके अलावा सम्मेलन के दौरान गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए नेट-शून्य उत्सर्जन संकल्पों पर उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह द्वारा पहली रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में ग्रीन वाशिंग (हरित लीपापोती) और कमजोर नेट-शून्य संकल्पों की निन्दा की गई और कहा गया कि नेट शून्य का लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें पारदर्शिता अपनानी होगी। सम्मेलन के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने समय पूर्व चेतावनी प्रणाली के लिए एक कार्यकारी कार्ययोजना की भी घोषणा की, जिसमें कहा गया कि इस तरह की चेतावनी प्रणाली पर वर्ष 2023 और 2027 के दौरान 3.1 अरब डॉलर के निवेश करने का लक्ष्य रखा जाना चाहिए। अमेरिका के पूर्व उप-राष्ट्रपति और जलवायु कार्यकर्ता ऐल गोर ने कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों का स्वतंत्र लेखाजोखा रखने के लिए सैटेलाइट और कृत्रिम बुद्धिमता का इस्तेमाल करते हुए विश्व भर में 70 हजार से अधिक स्थलों पर निगरानी की जाएगी। इससे वातावरण में छोड़ी जा रही कार्बन और मीथेन गैस उत्सर्जन के स्तर को मापा जाना सम्भव होगा। सम्मेलन के दौरान अर्थव्यवस्था के पांच बड़े क्षेत्रों डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? – बिजली, सड़क परिवहन, स्टील, हाइड्रोजन और कृषि में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नया मास्टर प्लान भी प्रस्तुत किया गया।

अगले वर्ष के आर्थिक पूर्वानुमान

भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2019 की तुलना में 7.5 प्रतिशत ही अधिक है, जिसका अर्थ है कि बीते तीन वर्षों में औसत सालाना वृद्धि दर मात्र 2.5 प्रतिशत रही है. यह महामारी के दौरान लगे आघात का परिणाम है

अगले वर्ष के आर्थिक पूर्वानुमान

बीते दो सप्ताह में भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई रिपोर्टों और लेखों का प्रकाशन हुआ है. इनमें सबसे अहम सरकार द्वारा जारी किया गया आर्थिक आंकड़ा है, जिसमें चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) की आर्थिक वृद्धि का आकलन है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय आम तौर पर दो माह की देरी से यह आंकड़ा देता है, जो यह नवंबर के आखिर में जारी हुआ. दूसरी बड़ी रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति से आयी.

समिति ने इस वर्ष की वृद्धि के अनुमान के साथ मुद्रास्फीति की संभावित स्थिति के बारे में बताया है. इस रिपोर्ट के आने से एक दिन पहले विश्व बैंक ने इस साल और अगले साल की भारत की वृद्धि का अनुमान जारी किया था. वैश्विक बैंक मॉर्गन स्टैनली ने आगामी एक दशक में भारत की संभावनाओं पर रिपोर्ट दी है, जिसे बहुत चर्चा मिली है. इनके अलावा भी कई विश्लेषण आये हैं, जिनमें शेयर बाजार, कर संग्रहण, यातायात, ढुलाई, कॉरपोरेट लाभ आदि के आंकड़ों के आधार पर विचार किया गया है. क्या सभी बड़ी रिपोर्टों में परस्पर सहमति दिखती है, यह विचारणीय है.

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने इस वर्ष की अनुमानित वृद्धि दर को सात से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है. उसमें वैश्विक सुस्ती, भारतीय निर्यात पर नकारात्मक असर और भू-राजनीतिक तनावों पर चिंता जतायी गयी है. इन कारकों में उच्च ब्याज दरें और शायद भारत जैसे उभरते बाजारों में कम पूंजी प्रभाव जैसी वैश्विक वित्तीय स्थितियां भी योगदान कर रही हैं. समिति ने कहा है कि शेष दो तिमाहियों में वृद्धि दर में और कमी आयेगी तथा इनके क्रमशः 4.3 और 4.2 प्रतिशत रहने के आसार हैं.

इसमें कुछ भी अजूबा नहीं है. आप समिति पर अनावश्यक ढंग से आशंकित होने का आरोप नहीं लगा सकते हैं. दूसरी ओर देखें, तो विश्व बैंक ने अपने आकलन में सुधार कर अनुमानित दर के 6.5 की जगह 6.9 प्रतिशत रहने की बात कही है. इसका आधार घरेलू अर्थव्यवस्था में संभावित बेहतरी है. इनकी आशंका और आशावाद विरोधाभासी लग सकते हैं, पर उनका अनुमानित आंकड़ा लगभग समान है.

ऐसे में कहा जा सकता है कि विश्व बैंक पहले अधिक आशंकित था, इसलिए बाद में उसने अनुमान बढ़ाया है. मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट तो असाधारण रूप से उत्साहित है. उसने भावी एक दशक का आकलन डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? कर भविष्यवाणी की है कि हमारी अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना होकर 8.5 ट्रिलियन डॉलर हो जायेगा तथा प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी.

यह रिपोर्ट स्टॉक मार्केट के वैश्विक निवेशकों को लक्षित है और उन्हें यह बताती है कि भारत के स्टॉक मार्केट की वृद्धि निवेशकों और कंपनियों के लिए बड़ा अवसर है. हालांकि इससे अभी असहमत होने की वजह नहीं है, पर लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स ने इस पर टिप्पणी करते हुए निवेशकों से सचेत रहने को कहा है. उसने ब्राजील और चीन का हवाला दिया है, जहां अच्छी वृद्धि के बावजूद स्टॉक निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ा है.

अब सरकार द्वारा तैयार आंकड़ों को देखा जाए. दूसरी तिमाही में पिछले साल इसी अवधि की तुलना में वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही है, जबकि पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में यह दर 13.5 प्रतिशत रही थी. इस तरह सुस्ती स्पष्ट है और अगली तिमाहियों में दरें और कम हो सकती हैं. अर्थव्यवस्था का आकार 2019 की तुलना में 7.5 प्रतिशत ही अधिक है, जिसका अर्थ है कि बीते तीन वर्षों में औसत सालाना वृद्धि दर मात्र 2.5 प्रतिशत रही है. यह महामारी के दौरान लगे आघात का परिणाम है.

लेकिन इसी अवधि में अमेरिकी और चीनी अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई है. अमेरिका में महामारी से पांच लाख मौतें हुईं थीं, जबकि चीन में मौतें तो बहुत कम हुईं, पर वहां कड़े लॉकडाउन लगाये जाते रहे. यह सही है कि 6.8 या 6.9 प्रतिशत की दर के साथ भी भारत डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. ध्यान रहे, वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन और अमेरिका की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत है, जबकि भारत का हिस्सा 3.5 प्रतिशत है. इसलिए घरेलू जीवन स्तर में सुधार के लिए भारत की वृद्धि दर बहुत अधिक होनी चाहिए.

उपभोक्ता खर्च, नयी परियोजनाओं में निवेश, सरकार का वित्त मुहैया कराना तथा निर्यात आर्थिक वृद्धि के संचालक होते हैं. निर्यात में अक्टूबर में गिरावट आयी है और इस पर डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? वैश्विक मंदी का बुरा असर पड़ा है. कीमती पत्थर, आभूषण और इंजीनियरिंग में बीते साल अक्टूबर की तुलना में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आयी है. अमेरिका में तकनीकी क्षेत्र में भारी छंटनी के कारण सॉफ्टवेयर निर्यात भी प्रभावित होगा.

जहां तक सरकारी सहयोग की बात है, तो चूंकि घाटे को और बढ़ाने की वित्तीय गुंजाइश नहीं है, इसलिए अगले साल के लिए उम्मीद नहीं रखी जा सकती है. केंद्र और राज्यों का सकल वित्तीय घाटा कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के 10 फीसदी से भी अधिक है. जीडीपी की तुलना में कर्ज का अनुपात भी 90 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है. वित्तमंत्री ने निजी क्षेत्र से निवेश बढ़ाने का आह्वान किया है. हालांकि ये शुरुआती संकेत हैं, पर आंकड़े बहुत सुस्त हैं.

हाल में बैंक कर्ज में हुई प्रभावी वृद्धि को लेकर हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि अधिकांश वृद्धि आवास, वाहन कर्ज और खुदरा कर्ज पर आधारित है. यह उपभोक्ताओं के बहुत छोटे हिस्से से आया है. असली वृद्धि औद्योगिक एवं व्यावसायिक परियोजनाओं के कर्ज से होनी चाहिए. उपभोक्ता खर्च पर दो चीजों का असर पड़ा है- मुद्रास्फीति और महंगाई.

लगभग तीन साल से मुद्रास्फीति छह फीसदी से अधिक रही है. इसका उपभोक्ताओं पर असर डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? होता डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? है और वे मनचाही चीजों की खरीद में कटौती करने की कोशिश करने लगते हैं. थोक मूल्य मुद्रास्फीति, जो उत्पादकों और छोटे उद्यमियों को प्रभावित करती है, दो अंकों में है. बेरोजगारी अब आधिकारिक रूप से आठ फीसदी हो चुकी है.

इस प्रकार, सभी चार संचालक तत्व- उपभोक्ता, निवेशक, सरकार और निर्यात- चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसलिए 2023 में कमतर वृद्धि दर अपेक्षित है. साथ ही, विनिमय दर से भी चुनौतियां हैं क्योंकि व्यापार घाटा बड़ा है. ब्याज दरों में बढ़ोतरी से कर्ज और पूंजी का खर्च भी बढ़ता जा रहा है. भारत इससे सांत्वना डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? ले सकता है कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से उसकी वृद्धि दर अधिक है. लेकिन अगले साल मजबूती बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि कमतर वृद्धि देश के गरीबों के लिए अधिक मुसीबत न लाये.

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आईआरडीएआई ने विदेशियों को बीमा कंपनी के वरीयता शेयर और अधीनस्थ ऋण में निवेश करने की अनुमति दी

IRDAI allows foreigners to invest in the Insurance Company’s

बीमा क्षेत्र के नियामक भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने विदेशी निवेशकों को भारतीय बीमा कंपनियों द्वारा जारी वरीयता शेयरों(preference shares) और अधीनस्थ ऋण(Subordinated debt) में निवेश करने की अनुमति दे दी है।

नियामक ने अब भारतीय बीमा कंपनियों द्वारा जारी अधीनस्थ ऋण को भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करने की भी अनुमति दी है। हालांकि,उन्हें विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है।

यदि अधीनस्थ ऋण ,जीवन बीमा कंपनियों, सामान्य बीमा कंपनियों या पुनर्बीमा कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है तो अधीनस्थ ऋण की परिपक्वता अवधि 10 वर्ष से कम नहीं होगी ।

स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के द्वारा जारी की गई अधीनस्थ ऋण के लिए परिपक्वता अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी

अधीनस्थ ऋण क्या है?

अधीनस्थ ऋण एक असुरक्षित ऋण है जो संपत्ति या आय पर दावों के संबंध में अन्य ऋणों या प्रतिभूतियों जिसे वरिष्ठ प्रतिभूतियां भी कहा जाता है, से नीचे रैंक करता है। अधीनस्थ ऋण को जूनियर सिक्योरिटीज भी कहा जाता है।

इसका मतलब यह है कि अगर कर्ज लेने वाला कर्ज चुकाने में चूक करता है तो कर्ज लेने वाले की सभी संपत्तियां जो जमानत के रूप में रखी गई हैं, बेच दी जाएंगी। संपत्तियों को बेचकर जो पैसा आएगा , उसका भुगतान पहले वरिष्ठ बांड धारकों को किया जाएगा और उसके बाद ही अधीनस्थ ऋण धारकों को भुगतान किया जाएगा।

वरीयता शेयर क्या है?

शेयर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। इक्विटी शेयर या सामान्य शेयर और वरीयता शेयर

इक्विटी शेयरधारकों के विपरीत वरीयता शेयर धारकों को वोट देने का अधिकार नहीं होता है। हालाँकि लाभांश के भुगतान के मामले में वरीयता शेयरधारकों को पहले लाभांश का भुगतान किया जाता है और फिर इक्विटी शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है।

लाभांश कंपनी द्वारा अर्जित किये गए लाभ का वह हिस्सा होता है जो कंपनी अपने शेयरधारकों के बीच बांटती है।

बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 74% है।

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