लगातार 9वें हफ्ता घटा विदेशी मुद्रा भंडार, क्या होगा घटते रिजर्व का असर
30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में भंडार 4.854 अरब डॉलर घटकर 532.664 अरब डॉलर रह गया है. देश की विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 2021 में 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सिलसिला लगातार 9वें दिन भी जारी रहा है. गिरावट के साथ अब देश का भंडार 2 साल के निचले स्तरों पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक पहले ही कह चुका है कि देश के रिजर्व में आ रही गिरावट का अधिकांश हिस्सा एक्सचेंज रेट की वजह से है. डॉलर के मुकाबले रुपया फिलहाल रिकॉर्ड निचले स्तरों पर पहुंच गया है. रिजर्व में लगातार आ रही गिरावट की वजह से चिंताएं बढ़ी हैं. हालांकि रिजर्व बैंक कह चुका है कि गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा के मामले में भारत की स्थिति काफी मजबूत है. जानिए अगर रिजर्व एक सीमा से ज्यादा गिरता है तो अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ता है.
कहां पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सिलसिला जारी रहने के बीच 30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में यह 4.854 अरब डॉलर घटकर 532.664 अरब डॉलर रह गया है. भंडार इससे पिछले सप्ताह में 8.134 अरब डॉलर कम होकर 537.518 अरब डॉलर पर रहा था. माना जा रहा है कि डॉलर के मुकाबले रुपये दर में गिरावट विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने को रोकने के जारी प्रयासों के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में यह कमी आई है. देश की विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 2021 में 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
आरबीआई की तरफ से शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) में गिरावट के कारण 30 सितंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है. एफसीए दरअसल पूरे भंडार का एक प्रमुख हिस्सा होता है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान एफसीए 4.406 अरब डॉलर घटकर 472.807 अरब डॉलर रह गया. डॉलर के संदर्भ में एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में वृद्धि या मूल्यह्रास का प्रभाव शामिल है.
आंकड़ों के अनुसार, सोने के भंडार का मूल्य 28.1 करोड़ डॉलर घटकर 37.605 अरब डॉलर पर आ गया है. समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 16.7 करोड़ डॉलर बढ़कर 17.427 अरब डॉलर हो गया. आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि समीक्षाधीन सप्ताह में आईएमएफ के पास सुरक्षित देश का मुद्रा भंडार 4.826 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा.
क्या है कमजोर रिजर्व का असर
उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार बेहद चिंता का विषय है.दरअसल विदेशी मुद्रा की मदद से केंद्रीय बैंक घरेलू करंसी में तेज गिरावट के नियंत्रित कर सकते हैं. जब उतार-चढ़ाव का दौर रहता है तो तेज गिरावट की स्थिति में बैंक अपने भंडार का इस्तेमाल कर करंसी को संभाल सकते हैं. इससे अनिश्चितता के बीच करंसी को नियंत्रित दायरे में रखा जा सकता है. और आयात बिल देश के नियंत्रण में रहता है. हालांकि रिजर्व घटने ये क्षमता खत्म हो जाती है और करंसी में तेज गिरावट अर्थव्यवस्था में दबाव बढ़ा देती है.
वहीं मजबूत रिजर्व से विदेशी कारोबारियों और निवेशकों के बीच अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसा बढ़ता है. क्योंकि इससे संकेत जाता है कि अर्थव्यवस्था किसी छोटे मोटे झटके को विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने आसानी से सहन कर सकती है. मजबूत रिजर्व विदेशी निवेश बढ़ाने और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का भरोसा जीतने में काफी मददगार साबित होता है. ऐसे जितने भी देश जिनका भंडार खत्म होने के करीब पहुंच गये हैं वहां से न केवल निवेशकों ने दूरी बना ली है साथ ही क्रेडिट रेटिंग घटने से नए कर्ज जुटाने में भी समस्या आ रही हैं.
Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के निचले स्तर पर, 524.52 अरब डॉलर रह गया रिजर्व
RBI के आंकड़ों के अनुसार देश का फॉरेन करेंसी असेट्स 465.075 अरब डॉलर और गोल्ड रिजर्व 37,206 अरब डॉलर रह गया.
3.85 अरब डॉलर की गिरावट के बाद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के सबसे निचले स्तर 524.52 अरब डॉलर रह गया है.
Foreign Exchange Reserves: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक 21 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में देश का विदेशी मुद्रा भंडार में 3.85 अरब डॉलर घटकर 524.52 अरब डॉलर रह गया है. जुलाई 2020 के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है. इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 अरब डॉलर की गिरावट के बाद 528.37 अरब डॉलर रह गया था. पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट दर्ज की जा रही है.
एफसीए और गोल्ड रिजर्व में भी गिरावट
आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में मुद्राभंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) 3.593 अरब डॉलर घटकर 465.075 अरब डॉलर रह गई है. इसके साथ ही देश के गोल्ड रिजर्व 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 अरब डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक के मुताबिक स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDRs) 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.44 अरब डॉलर हो गया है.
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रुपये में गिरावट को रोकने के प्रयास जारी
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की प्रमुख वजह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने रुपये की गिरावट को रोकने के लिए RBI मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है. अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के साथ सबसे ऊंचे स्तर पर था. आरबीआई द्वारा घरेलू करंसी के मूल्य को गिरावट से बचाने के लिए पिछले एक साल में अब तक 115 अरब डॉलर की बिकवाली कर चुका है.
विदेशी मुद्रा भंड़ार में गिरावट का असर
कोई भी देश जरूरत पड़ने पर अपने देश की करंसी में आई तेज गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंड़ार की मदद लेता है. हालांकि इसमें गिरावट के नुकसान भी हैं. अगर विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने मुद्रा भंड़ार ज्यादा कम हो जाता है, तो करंसी में अनियंत्रित गिरावट हो सकती है. इससे आयात पर निर्भर देशों पर बुरा असर पड़ता है, क्योंकि करंसी में गिरावट की वजह से आयात पर दिये जाने वाली लागत बढ़ जाती है.
गिरावट की मुद्रा
एक बार फिर डालर के मुकाबले रुपए की कीमत में चिंताजनक गिरावट दर्ज हुई है। इससे स्वाभाविक ही भारत को महंगाई के मोर्चे पर लड़ने में कठिनाई पैदा हो गई है।
सांकेतिक फोटो :Pixabay
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में एक डालर की कीमत इक्यासी रुपए नौ पैसे आंकी गई, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपए के अवमूल्यन के पीछे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज दरों में सख्ती, डालर का मजबूत होना और भारत में निवेशकों का भरोसा कमजोर होना माना जा रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए अपनी मौद्रिक नीति में सख्ती का रुख अपनाए हुए है, जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम भी नजर आया है।
मगर रुपए की कीमत में गिरावट महंगाई से पार पाने और निवेश आकर्षित करने की दिशा में चुनौतियां पेश करेगी। भारत पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य तेलों के मामले में बड़े पैमाने पर दूसरे देशों पर निर्भर है।
जब रुपए का अवमूल्यन होता है तो वस्तुओं के आयात पर अधिक खर्च करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि उन वस्तुओं की कीमतें घरेलू बाजार में बढ़ जाती हैं। रुपए के अवमूल्यन से पार पाने के लिए आयात के मुकाबले निर्यात बढ़ाने की रणनीति अपनानी पड़ती है। मगर निर्यात के मामले में भारत अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहा।
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रुपए के अवमूल्यन का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है। भारतीय शेयर बाजार का रुख कमजोर बना हुआ है, विदेशी निवेशकों में उत्साह नजर नहीं आ रहा। इसके चलते लगातार विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है। फिर सबसे बड़ी चुनौती चालू खाता घाटे से पार पाने का होता है।
भारत का चालू खाता घाटा पहले ही चिंताजनक स्तर पर है, रुपए के अवमूल्यन से इसके और बढ़ने की आशंका है। सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक विकास दर की भागीदारी काफी नीचे चल रही है। सरकार उसे रफ्तार देने और निवेश आकर्षित करने के विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने लिए करों में कटौती, कर्ज माफी, उद्योग-धंधे लगाने संबंधी नियम-कायदों और श्रम कानूनों को लचीला बनाने का प्रयास करती रही है।
मगर इसका असर नजर नहीं आ रहा। ऐसे में रुपए के अवमूल्यन से विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने एक बार फिर कच्चे तेल की खरीद और अंतत: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होगी। इसका असर उद्योगों की लागत पर पड़ेगा। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। अभी रिजर्व बैंक ने माना है कि अगर महंगाई छह फीसद तक रहती है, तो अर्थव्यवस्था में बेहतरी की उम्मीद बलवती होगी, मगर खुदरा महंगाई इस स्तर पर भी नहीं पहुंच पा रही।
आगे के दिनों में महंगाई पर काबू पाने की संभावना भी धुंधली बनी हुई है, क्योंकि इस बार बरसात पर निर्भर फसलों का उत्पादन लक्ष्य से काफी कम होने की उम्मीद जताई जा रही है। असमान वर्षा ने आगामी फसलों के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है। ऐसे में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाना भी कठिन हो सकता है।
पहले ही सरकार कुछ जिन्सों के निर्यात पर रोक और कुछ पर आयात शुल्क घटा कर महंगाई को काबू में करने का प्रयास कर चुकी है। मगर यह तरीका लंबे समय तक नहीं आजमाया जा सकता।
सरकार दावा तो करती है कि कोरोना काल के बाद निर्यात में तेजी आई है और लक्ष्य से अधिक निर्यात हुआ है, मगर हकीकत सामने है कि रुपए का अवमूल्यन हो रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद के लिए अधिक से अधिक जगह घेरने का प्रयास किया जाए।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है? | Foreign Exchange Reserves – UPSC Notes
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में एक बार फिर से गिरावट हुई है.
विदेशी मुद्रा भंडार क्या होता है?
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक में रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकें। विदेशी मुद्रा भंडार को एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखा जाता है। अधिकांशत: डॉलर और बहुत बा यूरो में विदेशी मुद्रा भंडार रखा जाता है। कुल मिलाकर विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंक नोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियां सम्मिलित होनी चाहिए। हालांकि, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि भी विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा होता हैं।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं –
- विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA)
- स्वर्ण भंडार
- विशेष आहरण अधिकार (SDR)
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच
FCA
- FCA ऐसी संपत्तियाँ हैं जिनका मूल्यांकन देश की स्वयं की मुद्रा के अतिरिक्त किसी अन्य मुद्रा के आधार पर किया जाता है.
- FCA विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है। इसे डॉलर के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- FCA में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्रा की कीमतों में उतार-चढ़ाव या मूल्यह्रास का असर पड़ता है।
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विदेशी मुद्रा भंडार का अर्थव्यवस्था के लिए महत्व
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी सरकार और RBI को आर्थिक विकास में गिरावट के कारण पैदा हुए किसी भी बाहरी या अंदरुनी वित्तीय संकट से निपटने में सहायता करती है.
- यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराती है।
- वर्तमान विदेशी भंडार देश के आयात बिल को एक वर्ष तक संभालने के लिए पर्याप्त है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से रुपए को डॉलर के मुकाबले स्थिति दृढ़ करने में सहायता मिलती है।
- वर्तमान समय में विदेशी मुद्रा भंडार सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुपात लगभग 15% है।
- विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट के बाजार को यह भरोसा देता है कि देश बाहरी और घरेलू समस्याओं से निपटने में सक्षम है।
विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन कौन करता है?
- आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन और मैनेजर के रूप में कार्य करता है। यह कार्य सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार होता है।
- आरबीआई रुपए की स्थिति को सही रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग करता है। जब रुपया कमजोर होता है तो आरबीआई डॉलर की बिक्री करता है। जब रुपया मजबूत होता है तब डॉलर की खरीदारी की जाती विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने है। कई बार आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए बाजार से डॉलर की खरीदारी भी करता है।
- जब आरबीआई डॉलर में बढ़ोतरी करता है तो उतनी राशि के बराबर रुपया निर्गत करता है। इस अतिरिक्त तरलता (liquidity) को आरबीआई बॉन्ड, सिक्योरिटी और एलएएफ ऑपरेशन के माध्यम से प्रबंधन करता है।
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विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी
बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.
सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.
इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने रही है, जिससे भारत का 'भुगतान संतुलन' खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.
यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.
बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.
कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.
विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.
इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.
लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर विदेशी मुद्रा संकेत खरीदने अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.
बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.
भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.
अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.
इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.
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