ट्रेन पर डॉक्यूमेंट्री
इस ट्रेन का झारखंड, रांची और लोहरदगा के लिए क्या इम्पॉर्टेंस था। कैसे यह ट्रेन यहां की लाइफस्टाइल में शामिल थी, इसे दिखाने के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने 'गाड़ी ट्रेंड लाइन्स खींचना लोहरदगा मेलÓ नाम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई। इसे रांची-लोहरदगा नैरो गेज ट्रेन के अंदर ही फिल्माया गया था। इसमें जानेमाने संस्कृतिकर्मी दिवंगत राम दयाल मुंडा ने म्यूजिक दिया था। यह फिल्म देश दुनिया के फिल्म फेस्टिवल्स में अवार्ड भी जीत चुकी है।


स्टीम की स्टोरी सुनाता यह इंजन

रांची रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा यह स्टीम इंजन स्टेट में ट्रेन के डेवलपमेंट की स्टोरी का गवाह है। स्टेट डिफ्रेंट रूट पर चलने के बाद रांची-लोहरदगा नैरो गेज पर ट्रेन की बोगियों को खींचने वाला यह इंजन 200४ में रांची रेलवे स्टेशन पर लगाया गया है। यह इंजन चित्तरंजन रेल फैक्ट्री में बना है। आज भी इस इंजन को देखने के लिए लोग बाहर से आते हैं। हालांकि बहुत कम लोगों को इस बारे में जानकारी मिलती है कि यह इंजन कभी रांची-लोहरदगा के बीच चलता था। यह इंजन भी रांची रेलवे के लिए एक हेरिटेज है। रांची रेल एडमिनिस्ट्रेशन को पब्लिक और विजिटर्स को इसकी इनफॉर्मेशन देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

Radcliffe Line: 75 वर्ष पहले आज ही के दिन भारत-पाकिस्तान के बीच खींची गई थी सरहद

ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ ने एक हिंदू और एक मुस्लिम वकील की मदद से दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण किया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम रेडक्लिफ ( Radcliffe Line) रखी गई। इस दिन बड़ी संख्या में लोग भारत के इस पार से उस पार पाकिस्तान चले गए थे और हिन्दुस्तान दो हिस्सों में बंट गया था।

भारत-पाक के बीच 2900 किलोमीटर लंबी सीमा
भारत-पाकिस्तान के बीच 175,000 वर्ग मील क्षेत्र को समान रूप से विभाजित करने की जिम्मेदारी सर रेडक्लिफ को दी गई थी। उन्हें दोनों देशों के सीमा आयोगों का संयुक्त अध्यक्ष बनाया गया था। भारत की स्वतंत्रता 15 अगस्त, 1947 से तीन दिन पहले यानी 12 अगस्त, 1947 को सीमांकन रेखा को अंतिम रूप दिया गया था। इसके बाद 17 अगस्त 1947 को इस रेखा को लागू कर दिया गया।

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रेडक्लिफ रेखा तो भारत पाकिस्तान की सरहद बना वह पश्चिमी भाग भारत-पाकिस्तान सीमा के रूप में ट्रेंड लाइन्स खींचना जाना जाता है। जबकि पूर्वी भाग में भारत-बांग्लादेश की सीमा है। भारत-पाकिस्तान के बीच 2900 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है लेकिन क्रॉसिंग पॉइंट सिर्फ 5 बनाए गए है।

एक महीने में तय हुईं दोनों देशों की सीमाएं
भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा के लिए सिर्फ एक महीने का वक्त ही मिला था। 8 जुलाई, 1947 को जब सर रेडक्लिफ भारत आए तो उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई। उन्हें एक महीने का वक्त दिया गया। इसके बाद उनकी टीम इस काम में जुट गई। जनगणना रिपोर्ट और कुछ नक्शों की मदद से उन्होंने सीमा रेखा पर काम शुरू ट्रेंड लाइन्स खींचना किया। धार्मिक जनसांख्यिकी के आधार पर सीमा को बांटने का काम किया गया।

काकोरी काण्ड (काकोरी ट्रेन एक्शन) 1925 का इतिहास | Kakori train conspiracy explain history in hindi


हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल 10 क्रांतिकारियों द्वारा 19 अगस्त ट्रेंड लाइन्स खींचना 1925 को सहारनपुर लखनऊ लाइन पर काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" की चेन दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व 6 अन्य क्रान्तिकारियों की सहायता से ब्रिटिश खजाना लूटा, जिसे काकोरी कांड कहा गया।


इस प्रकरण में लगभग 40 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर इनमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह को फांसी दे दी गई तथा शेष को "काला पानी" की सजा सुनाई गई।

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का प्रमुख अध्याय 'काकोरी कांड' का नाम बदलकर 'काकोरी ट्रेन एक्शन' कर दिया है।

सौ साल पहले ऐसे होते थे ट्रेन में खास इंतजाम

सौ साल पहले ऐसे होते थे ट्रेन में खास इंतजाम

Ranchi: सिटी में पहली बार ट्रेन 1907 में नैरो गेज पर चली थी, जो रांची से पुरूलिया तक गई थी. इसके बाद रांची से लोहरदगा के बीच 1913 से पैसेंजर ट्रेन शुरू हुई. यह ट्रेन रांची और लोहरदगा के बीच दिन में एक बार चलती थी. सुबह यह ट्रेन रांची से लोहरदगा जाती और वहां से उसी दिन शाम को वापस आ जाती थी. बाद में इसे दोनों ओर से शुरू किया गया. एक सुबह रांची से खुलती थी और दूसरी लोहरदगा से और फिर दोनों उसी दिन शाम को वापस हो जाती थी. यह ट्रेन रांची और लोहरदगा के बीच लाइफलाइन मानी जाती थी.

टूरिस्ट्स को पसंद थी ट्रेन
रांची और लोहरदगा के बीच नैरो गेज की इस ट्रेन में कोयले का इंजन लगा हुआ था। यह ट्रेन जब चलती थी तो इसे देखने के लिए लोग इसके नजदीक आ जाते थे। उस वक्त इस ट्रेन में सफर करना बहुत ही रोमांचकारी हुआ करता था। खासकर छोटानागपुर के दौरे पर आनेवाले इंग्लिश ऑफिसर्स तो इस ट्रेन को लेकर काफी क्रेजी हुआ करते थे। उनके लिए इस ट्रेन की बोगी में स्पेशल अरेजमेंट किया जाता था। इसके अलावा टूरिस्ट्स भी इस टे्रन से जर्नी करना पसंद करते थे।

बिजनेस से था कनेक्शन
साहित्यकार श्रवण कुमार गोस्वामी का कहना है कि रांची लोहरदगा ट्रेन से लोहरदगा से बड़ी संख्या में लोग रांची आते थे। यह ट्रेन सुबह 10 बजे रांची रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी। दिनभर वे लोग रांची ट्रेंड लाइन्स खींचना रहकर अपना बिजनेस करते थे और शाम को लोहरदगा लौट जाते थे। रांची में ट्रेन की शुरुआत कैसे हुई, इस पर श्रवण कुमार गोस्वामी ने छोटी लाइन से बड़ी कहानी नाम से एक चैप्टर लिखा है, जो उनकी बुक रांची तब और अब में पब्लिश हुई है।
हेरिटेज बनते-बनते रह गई
रांची-लोहरदगा छोटी लाइन को हेरिटेज में शामिल करने की बात चल ही रही थी कि 2004 में यहां पर नैरो गेज को मीटर गेज में कनवर्ट कर दिया गया और नैरो गेज ट्रेन का चलना बंद हो गया।

सौ साल पहले ऐसे होते थे ट्रेन में खास इंतजाम

ट्रेन पर डॉक्यूमेंट्री
इस ट्रेन का झारखंड, रांची और लोहरदगा के लिए क्या इम्पॉर्टेंस था। कैसे यह ट्रेन यहां की लाइफस्टाइल में शामिल थी, इसे दिखाने के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने 'गाड़ी लोहरदगा मेलÓ नाम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई। इसे रांची-लोहरदगा नैरो गेज ट्रेन के अंदर ही फिल्माया गया था। इसमें जानेमाने संस्कृतिकर्मी दिवंगत राम दयाल मुंडा ने म्यूजिक दिया था। यह फिल्म देश दुनिया के फिल्म फेस्टिवल्स में अवार्ड भी जीत चुकी है।


स्टीम की स्टोरी सुनाता यह इंजन

रांची रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा यह स्टीम इंजन स्टेट में ट्रेन के डेवलपमेंट की स्टोरी का गवाह है। स्टेट डिफ्रेंट रूट पर चलने के बाद रांची-लोहरदगा नैरो गेज पर ट्रेन की बोगियों को खींचने वाला यह इंजन 200४ में रांची रेलवे स्टेशन पर लगाया गया है। यह इंजन चित्तरंजन रेल फैक्ट्री में बना है। आज भी इस इंजन को देखने के लिए लोग बाहर से आते हैं। हालांकि बहुत कम लोगों को इस बारे में जानकारी मिलती है कि यह इंजन कभी रांची-लोहरदगा के बीच चलता था। यह इंजन भी रांची रेलवे के लिए एक हेरिटेज है। रांची रेल एडमिनिस्ट्रेशन को पब्लिक और विजिटर्स को इसकी इनफॉर्मेशन देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

वंदे भारत या कहें तो train 18, कब, कैसे?

Chairman रेलवे बोर्ड ने पूछा ….. are you sure , we can do it .

कितना पैसा चाहिये R&D के लिये ?

सिर्फ 100 करोड़ रु Sir……

रेलवे ने उनको ICF में posting और 100 करोड़ रु दे दिया ।

उस अधिकारी ने आनन फानन में रेलवे इंजीनियर्स की एक Team खड़ी की औऱ सभी काम मे जुट गए । दो साल के अथक परिश्रम से जो नायाब प्रॉडक्ट तैयार हुआ उसे हम ट्रेन 18 बोले तो वन्दे भारत Rake के नाम से जानते हैं ।

और जानते हैं , 14 डब्बे की इस ट्रेन 18 की लागत कितनी आई .

जबकि Talgo सिर्फ 10 डिब्बों के 250 करोड़ माँग रही थी ।

ट्रेन 18 भारतीय रेल के गौरवशाली इतिहास का सबसे नायाब हीरा है । इसकी विशेषता ये है कि इसे खींचने के लिए किसी इंजन की ज़रूरत नही पड़ती क्योंकि इसका हर डिब्बा खुद ही self propelled है , बोले तो हर डिब्बे में मोटर लगी है ।

दो साल में तैयार हुए पहले rake को वन्दे भारत ट्रेन के नाम से वाराणसी नई दिल्ली के बीच चलाया गया ।

रेलवे कर्मचारियों की उस team को इस शानदार उपलब्धि के लिये क्या इनाम मिलना चाहिये था ?

उस अधिकारी को पद्म सम्मान . पद्मश्री ……

15 Feb 2019 को जब प्रधानमंत्री मोदी जी ने ट्रेन 18 के पहले रेक को वन्दे भारत के रूप में वाराणसी के लिये हरी झंडी दिखा के रवाना किया , तो उस भव्य कार्यक्रम में ट्रेन 18 के निर्माताओं को बुलाया ही नही गया ।

उल्टे पूरी team के ऊपर नये CRB ने विजिलेंस की जांच बैठा दी । आरोप लगा कि ट्रेन 18 के कल पुर्जे खरीदने में Tender प्रक्रिया का पालन न हुआ ।

ICF ने अगले दो साल यानी 2020 तक ट्रेन 18 के 100 rakes बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी ।

पर नई ट्रेन बनाना तो दूर , पूरी team ही विजिलेंस जांच में उलझा दी गयी । सभी अधिकारियों Engineers को ICF से दूर अलग अलग स्थान पे भेज दिया गया ।

कुछ नही निकला । कोई भ्रष्टाचार था ही नही सो निकलता क्या ? कहां तो दो साल में 100 rake बनने वाले थे , 1 भी न बना । जांच और R&D के नाम पे तीन साल बर्बाद हुए ।

अंततः 2022 में उसी ICF ने उसी तकनीक से 4 Rake बनाये जिन्हें अब दिल्ली ऊना और बंगलुरू मैसूर और मुम्बई अहमदाबाद रुट पे चलाया जा रहा है ।

उस होनहार इंजीनियर का नाम था Sudhanshu Mani

Mani साहब 2018 में ही Retire हो गये ।

इस कृतघ्न देश में ट्रेन 18 जैसी विलक्षण उपलब्धि के लिये उनकी team की किसी ने पीठ तक न थपथपाई ।

पिछले दिनों जब वन्दे भारत भैंस से टकरा गई और उसका अगला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया तो सब ट्रेन के डिज़ाइन की अनर्गल आलोचना करने लगे ।

तब Sudhanshu Sir का दर्द छलक आया और उन्होंने एक लेख लिख उसके design की खूबियां बताईं ।

ग्रीन टॉप वाली लड़की ने मेट्रो में लड़के साथ किया ये काम, किसी ने रिकॉर्ड करके वायरल कर दिया वीडियो

नई दिल्ली: Girl Boy in Metro Train सोशल मीडिया पर कब क्या वायरल हो जाए ये कहा नहीं जा सकता। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो ने कई लोगों को स्टार बना दिया तो कुछ लोगों की लंका भी सोशल मीडिया के चलते लग गई। ऐसा ही एक वीडियो इन दिनों जमकर वायरल हो रहा है।

Girl Boy in Metro Train वायरल वीडियो में आप देख सकते हैं कि एक शख्स मेट्रो की सीट पर चादर तानकर मजे से सो रहा था। ऐसा ही एक वीडियो अब सामने आया है, जिसमें एक लड़का ट्रेंड लाइन्स खींचना ट्रेंड लाइन्स खींचना मेट्रो में बैठे-बैठे इतनी गहरी नींद में सो गया, कि उसके साथ जो भी हुआ वो देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

वायरल हो इस वीडियो में देखा जा सकता है कि मेट्रो में एक भी सीट खाली नहीं है। दरवाजे के ठीक बगल वाली सीट पर सबसे किनारे एक लड़की बैठी है। उसके बगल में एक लड़का नीली टीशर्ट पहने बैठा है, जो बैठे-बैठे सो रहा है। लड़का इतनी मस्त नींद में है कि वो धीरे-धीरे सीट से आगे की ओर झुकने लगता है, तभी ग्रीन टॉप वाली लड़की की निगाह उस पर पड़ती है। लड़का जैसे ही सीट से नीचे गिरने वाला होता है कि तभी लड़की उसकी टीशर्ट पकड़कर उसे खींच लेती है और इस तरह लड़का गिरने से बच जाता है। लड़की को अब ऐसे एक अजनबी लड़के की मदद करता देख हर कोई हैरान है।

इस वायरल वीडियो को इंस्टाग्राम पर Md Moeen Shaikh नाम के यूजर ने शेयर किया है। वीडियो को लाखों लोग पसंद कर चुके हैं। इस वीडियो पर मजेदार कमेंट्स की बारिश भी लगातार हो रही है।

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