एम्फी ने कहा है कि कराधान व्यवस्था समान होनी चाहिए। इससे कानून का उल्लंघन कम होगा। इसके अलावा म्युचुअल फंड उद्योग ने हाल आयकर अधिनियम में जोड़ी गई धारा 194आर से स्वयं के लिए छूट की भी मांग की है। उद्योग ने यह भी मांग की है कि म्युचुअल फंडों को एनपीएस इक्विटी पर व्यापार के लाभ के समान कर व्यवस्था के साथ पेंशन-केंद्रित योजनाएं पेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

अन्य देशों की तरह 25 से 30 फीसदी किया जा सकता है एलटीसीजी टैक्स

दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) पर अधिकतम 15 प्रतिशत अधिभार (सरचार्ज) लिया जा रहा, सरकार इसे बढ़ाकर 25 से 30 फीसदी करने की तैयारी में है. जानिए क्या होता है एलटीसीजी टैक्स, एक्सपर्ट का क्या कहना है.

हैदराबाद : केंद्र सरकार पूंजीगत लाभ कर प्रणाली (capital gains tax system) में बदलाव की तैयारी कर रही है. सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ाने के लिए लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (एलटीसीजी) में सुधार करना चाहती है. इससे उसका राजस्व बढ़ेगा और वह जनकल्याणकारी योजनाओं पर ज्यादा खर्च कर सकेगी. वित्त मंत्रालय के दो अधिकारियों ने बजट के बाद ही इसके संकेत दे दिए थे. उनके मुताबिक कई देशों में लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स 25 से 30 फीसदी है. ऐसे में भारत इससे अलग नहीं हो सकता. जाहिर है कि आने इक्विटी पर व्यापार के लाभ वाले समय में एलटीसीजी टैक्स बढ़ सकता है.

फंडों ने एलटीसीजी पर रियायत मांगी

देश में म्युचुअल फंड उद्योग ने लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देने के लिए आगामी बजट में दीर्घावधि इक्विटी निवेशकों के लिए कर रियायत दिए जाने की मांग की है। उद्योग ने कहा है, 'हमारा अनुरोध है कि सूचीबद्ध इक्विटी शेयरों या इक्विटी आधारित फंड योजनाओं को पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) से छूट (यदि इक्विटी शेयरों या म्युचुअल फंडों को तीन साल तक रखा जाए) दी जाए।'

इस प्रस्ताव को उचित ठहराते हुए म्युचुअल फंड उद्योग संगठन एम्फी ने कहा है कि इक्विटी योजनाओं पर 10 प्रतिशत एलटीसीजी कर डेट योजनाओं पर लागू कर के मुकाबले काफी ज्यादा है। मौजूदा समय में, इक्विटी निवेश (एक साल या इससे अधिक समय के) से प्राप्त लाभ पर 10 प्रतिशत का कर लगता है, यदि यह लाभ एक वित्त वर्ष में 100,000 रुपये के पार पहुंचता है। डेट फंडों के मामले में, लाभ पर कर निवेशकों की कर दर के हिसाब से लगता है, लेकिन तीन साल से ज्यादा निवेश बनाए रखने पर इंडेक्सेशन लाभ (कर घटाने के लिए निवेश का मूल्य मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया जाता है) मिलता है।

स्मार्ट मनी: इक्विटी से अपने भविष्य को जोखिम मुक्त रखें

शटर स्टॉक

  • मुबंई,दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2018,
  • (अपडेटेड 29 अगस्त 2018, 7:02 PM IST)

जिन निवेशकों ने कम जोखिम वाली योजनाओं में पैसा लगाया था, उन्हें अपने निवेश पर मिलने वाले रिटर्न में पिछले कुछ वर्षों से लगातार काफी गिरावट देखने को मिली है, चाहे वह पब्लिक प्राविडेंट फंड (पीपीएफ) हो, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी) हो, किसान विकास पत्र (केवीपी) हो, पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम स्कीम हो या बैंकों में सावधि अथवा आवर्ती जमा.

वर्ष 2000 के शुरुआती वर्षों के विपरीत, जब स्माल सेविंग्स पर ब्याज दर दहाई में हुआ करती थी, पर अब ये 8 फीसदी के आसपास हैं. 2011 से छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज की दरों को सरकारी बांडों से जोड़ दिया गया है. 15 इक्विटी पर व्यापार के लाभ वर्षों के पीपीएफ खाते में इस समय मात्र 7.6 प्रतिशत का ब्याज मिल रहा है और एनएससी पर भी इतना ही ब्याज मिल रहा है जबकि केवीपी पर 7.3 प्रतिशत ही है.

FDI: एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 14 फीसदी गिरावट, कर्ज वृद्धि के लिए बैंकिंग सिस्टम हो बेहतर

सांकेतिक तस्वीर

देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) इक्विटी प्रवाह चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-सितंबर अवधि में 14 फीसदी घटकर 26.9 अरब डॉलर रहा। डीपीआईआईटी के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 31.15 अरब डॉलर था। कुल एफडीआई प्रवाह भी चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में घटकर 39 अरब डॉलर रह गया।

बीमा कंपनियां डॉक्टरों का नेटवर्क बढ़ाने को एचपीआर का करें उपयोग
बीमा नियामक इरडा ने बीमा कंपनियों से ओपीडी और अन्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए डॉक्टरों या अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों का नेटवर्क बनाने के लिए हेल्थकेयर प्रोफेशनल रजिस्ट्री (एचपीआर) का लाभ उठाने को कहा है। एचपीआर के तहत केवाईसी या आधार का उपयोग कर स्वास्थ्य सेवाओं के पेशेवरों की आईडी बनाई जाती है। इसमें मेडिकल योग्यता भी शामिल होती है।

विस्तार

देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) इक्विटी प्रवाह चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-सितंबर अवधि में 14 फीसदी घटकर 26.9 अरब डॉलर रहा। डीपीआईआईटी के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 31.15 अरब डॉलर था। कुल एफडीआई प्रवाह भी चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में घटकर 39 अरब डॉलर रह गया।

बीमा कंपनियां डॉक्टरों का नेटवर्क बढ़ाने को एचपीआर का करें उपयोग
बीमा नियामक इरडा ने बीमा कंपनियों से ओपीडी और अन्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए डॉक्टरों या अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों का नेटवर्क बनाने के लिए हेल्थकेयर प्रोफेशनल रजिस्ट्री (एचपीआर) का लाभ उठाने को कहा है। एचपीआर के तहत केवाईसी या आधार का उपयोग कर स्वास्थ्य सेवाओं के पेशेवरों की आईडी बनाई जाती है। इसमें मेडिकल योग्यता भी शामिल होती है।

भारतीय बीमा एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बुधवार को कहा कि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने एचपीआर को शामिल किया है। यह पूरे भारत में आधुनिक और पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले पेशेवरों के पंजीकृत और सत्यापित डॉक्टरों का एक भंडार है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों की पेशकश करने वाली सामान्य और हेल्थ बीमा कंपनियां भी ओपीडी या अन्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए रजिस्ट्री का लाभ उठाने पर विचार कर सकती हैं। एजेंसी

समता पर व्यपार नीति के उद्देश्य

समता पर व्यापार नीति के निम्नलिखित चार उद्देश्य होते हैं-

(i) समता अंशों पर दिये जाने वाले लाभांश की दर में वृद्धि करना।

(ii) व्यवसाय का नियन्त्रण कुछ हाथों में ही केन्द्रिता रखना।

(iii) कम स्वामित्व पूँजी के आधार पर व्यापार पर अधिकतम ऋण लेकर वित्तीय साधनों को नियन्त्रित करना।

(iv) कर की राशि बचाना क्योंकि ऋणपत्रों पर ब्याज एक व्यय माना जाता है।

समता पर व्यापार नीति का महत्व

समता पर ब्याज नीति का बहुत महत्व होता है। ऋण पूँजी के आधार पर व्यापार करने से उनका ब्याज ब्यय माना जाता है। इससे कर कम चुकाना पड़ता है। ऋण पूँजी पर ब्याज की मात्रा भी सीमित होती है। इससे समता अंशों के लिए अधिक लाभांश दिया जा सकता है। इससे कम्पनी की साख में वृद्धि होती है। साख बढ़ने पर उसे ऋण भी आसानी से मिल जाते हैं।

किन्तु कभी-कभी समता से व्यापार में हानि भी होती है। कम्पनी के लाभ कम होने पर यह राशि ब्याज चुकाने में ही समाप्त हो जाती है व समता अंशों पर लाभांश घोषित नहीं किया जा सकता। इससे कम्पनी की साख में गिरावट आती है।

अतः संस्था को समता पर व्यापार नीति तभी अपनानी चाहिए जब ब्याज दर की तुलना में उसकी अर्जन क्षमता अधिक हो।

समता पर व्यापार की सीमाएँ

समता पर व्यापार की निम्न सीमाएँ हैं-

(1) आय की स्थिरता व अनिश्चितता- समता पर व्यापार की नीति तभी लाभदायक हो सकती है जब कम्पनी के लाभ निश्चित व स्थिर हों। यदि आय में अनियमितता या अस्थिरता है तो समता पर व्यापार की नीति हानिप्रद होगी। लाभ कम होने पर वह ब्याज चुकाने में ही समाप्त हो जायेंगे।

(2) ऊँची ब्याज दरों पर ऋण प्राप्ति- यदि कम्पनी को निम्न ब्याज दर पर ऋण प्राप्त हो जाते हैं तो समता पर व्यापार करना लाभप्रद है अन्यथा नहीं। यदि प्रत्येक ऋण बढ़ने के साथ-साथ व्याज दर बढ़ती जाती है तो समता अंशों पर लाभांश कम होता जायेगा। प्रत्येक ऋण लेने पर ऋणदाता की जोखिम बढ़ जाती है अतः नये ऋण अधिक ब्याज पर ही प्राप्त होते हैं।

(3) प्रबन्धकों का दृष्टिकोण- कभी-कभी कम्पनी की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी होती है कि ऋण प्राप्त करना आसान होता है व ऋण प्राप्त कर काम चलाना सस्ता पड़ता है किन्तु प्रबन्धों की नीति के कारण ऋण कम लिये जाते हैं। इनका कारण प्रबन्धकों की ऋण न लेने की नीति हो सकती है या प्रबन्धक ऋण न लेकर कम्पनी की साख ऊँची बनाकर भविष्य में कम ब्याज दर पर ब्याज प्राप्त करना चाहते हैं।

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