कम जोखिम में ज्यादा फायदा पाने का आसान तरीका है ऑप्शन ट्रेडिंग से निवेश, ले सकते हैं बीमा

यूटिलिटी क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? डेस्क. हेजिंग की सुविधा पाते हुए अगर आप मार्केट में इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं तो फ्यूचर ट्रेडिंग के मुकाबले ऑप्शन ट्रेडिंग सही चुनाव होगा। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आपको शेयर का पूरा मूल्य दिए बिना शेयर के मूल्य से लाभ उठाने का मौका मिलता है। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आप पूर्ण रूप से शेयर खरीदने के लिए आवश्यक पैसों की तुलना में बेहद कम पैसों से स्टॉक के शेयर पर सीमित नियंत्रण पा सकते हैं।

वायदा और विकल्प के बीच अंतर

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भारत में ईक्विटीज़ से बड़ा मार्केट है ईक्विटी डेरिवेटिव मार्केट भारत में डेरिवेटिव्स में मुख्य रूप से दो प्रोडक्ट्स हैं – ऑप्शन्स औऱ फ्यूचर्स फ्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर है कि फ्यूचर्स लीनियर हैं जब कि ऑफ्शन्स नॉन-लीनियर हैं। डेरिवेटिव्स का अर्थ है कि इनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है लेकिन उनकी वैल्यू अंडरलाइंग ऐसेट से व्युपत्रित होती है। उदाहरण के लिए, रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ पर ऑप्शन्स और फ्यूचर्स रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ के स्टॉक के दाम पर निर्भर है और उन्हीं से उनकी वैल्यू निर्दिष्ट होती है। ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग भारतीय ईक्विटी मार्केट के महत्वपूर्ण भाग हैं। आइए हम ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के बीच अंतर को समझें और जानें कि किस प्रकार इक्विटी फ्यूचर्स और ऑप्शन्स मार्केट समग्र इक्विटी मार्केट के अभिन्न अंग हैं।

फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या हैं?

फ्यूचर्स एक अंडर लाइंग क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? स्टॉक (या अन्य ऐसेट) को एक पूर्वनिर्धारित मूल्य पर और पूर्वनिर्धारित अवधि के पूरे होने पर खरीदने और बेचने का क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? अधिकार और बाध्यता है। ऑप्शन्स एक अधिकार है जिसमें ईक्विटी या इन्डेक्स खरीदने और बेचने की बाध्यता नहीं होती। एक कॉल ऑप्शन खरीदने का अधिकार होता है जबकि एक पुट ऑप्शन बेचने का अधिकार होता है।

तो, मुझे ऑप्शन्स और फ्यूचर्स से किस तरह लाभा होगा?

चलिए, पहले फ्यूचर्स पर एक नज़र डालें। मान लीजिए कि आप टाटा मोटर्स के क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? 1500 शेयर रु. 400 के दाम पर खरीदना चाहते हैं। इसके लिए आपको रु. 6 लाख निवेश करने होंगे। वैकल्पिक रूप से, आप टाटा मोटर्स का 1 लॉट (जिसमें 1500 शेयर होते हैं) भी खरीद सकते हैं। इससे फायदा है क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? कि जब आप फ्यूचर्स खरीदते हैं, तो आप केवल मार्जिन का भुगतान करते हैं जो कि (मान लीजिए) पूरी कीमत का लगभग 20% है। इसका मतलब है कि आपका लाभ ईक्विटीज़ में निवेश करने की तुलना में पाँच गुना होगा। लेकिन इसमें नुकसान भी पाँछ गुना हो सकता है और लेवरेज्ड ट्रेड का यही जोखिम है।

ऑप्शन बिना बाध्यता वाला अधिकार है। तो, आप टाटा मोटर्स का 400 कॉल ऑप्शन रु. 10 में खरीद सकते हैं। क्योंकि लॉट साइज़ 1500 शेयर है, तो आपका अधिकतम नुकसान केवल रु. 15000 होगा। नकारात्मक पक्ष देखें तो भले ही टाटा मोटर्स के शेयर का दाम रु.300 हो जाए, आपका नुकसान केवल रु.15,000 होगा। सकारात्मक पक्ष देखें तो, शेयर का दाम रु. 410 से ज्यादा होने पर, आपका लाभ असीमित होगा।

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड कैसे किया जाए?

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड 1 महीने, 2 महीने और 3 महीने के लिए अनुबंध के माध्यम से किया जाता है। सभी एफ ऐंड ओ अनुबंधों की अवधि महीने के अंतिम बृहस्पतिवार को खत्म हो जाती है। फ्यूचर्स फ्यूचर के दाम पर ट्रेड किए जाएंगे जो कि आमतौर पर टाइम वैल्यू के कारण स्पॉट प्राइस से अधिक दाम होता है। एक कॉन्ट्रैकट के लिए एक स्टॉक की केवल एक फ्यूचर प्राइस होगी। जैसे कि जनवरी 2018 को कोई व्यक्ति टाटा मोटर्स के जनवरी फ्यूचर्स, फरवरी फ्यूचर्स और मार्च फ्यूचर्स में ट्रेड कर सकता है। ऑप्शनस में ट्रेड करना थोड़ा जटिल होता है क्योंकि आप वास्तव में प्रीमियम ट्रेड करते हैं। इसलिए, एक ही स्टॉक के कॉल ऑप्शन्स और पुट ऑप्शन्स के लिए भिन्न-भिन्न स्ट्राइक्स होंगें। टाटा मोटर्स के मामले में, 400 कॉल का कॉल ऑप्शन रु.10 होगा और जैसे जैसे क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? स्ट्राइक बढ़ेगा, इन ऑप्शन्स का दाम धीरे धीरे कम होता जाएगा।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की कुछ मूल बातें

फ्यूचर्स मार्जिन के साथ इक्विटी ट्रेड करने का लाभ देते हैं। चाहें आप फ्यूचर्स खरीद रहे हों या बेच रहे हों, इसके साथ जुड़े जोखिम भी असीमित हैं। जहाँ ऑप्शन्स की बात आती हैं, खरीदार अपना नुकसान भुगतान किए गए प्रीमियम तक सीमित कर सकता है। क्योंकि ऑप्शन्स नॉन-लीनियर होते हैं, इसलिए वो जटिल ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कार्य-योजनाओं द्वारा ज्यादा नियंत्रित किए जा सकते हैं। जब आप फ्यूचर्स खरीदते या बेचते हैं तो आपको अग्रिम रूप से मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपको इनिशियल मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन जब आप ऑप्शन्स खरीदते हैं तो आपको केवल प्रीमियम मार्जिन का ही भुगतान करना पड़ता है। बस क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? यही है!

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के अंतर को समझना।

जहाँ फ्यूचर्स की बात आती है तो उसका सिद्धांत बहुत सरल है। अगर आप स्टॉक के दाम के बढ़ने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक पर फ्यूचर्स खरीदते हैं और अगर आप स्टॉक के दाम घटने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक या इन्डेक्स के फ्यूचर्स बेचते हैं। ऑप्शन्स की चार संभावनाएं हो सकती हैं। चलिए प्रत्येक प्रकार को ऑप्शन्स और फ्यूचर्स ट्रेडिंग के उदाहरण से समझें। मान लीजिए कि इन्फोसिस के शेयर का वर्तमान दाम रु. 1000 है। आइए समझते हैं कि विभिन्न ट्रेडर्स अपने दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न प्रकार के ऑप्शन्स को कैसे प्रयोग करेंगे।

1. निवेशक A अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 2 महीनों में रु.1150 तक जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 1050 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का कॉल ऑप्शन खरीदे। वो काफी कम प्रीमियम देकर अपसाइड में भाग ले सकता है।

2. निवेशक B अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 1 महीने में रु.900 तक गिर जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 980 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का पुट ऑप्शन खरीदे। वो आसानी से शेयर के डाउनसाइड मूवमेंट में भाग लेकर लाभ कमा सकता है जब उसके द्वारा भरे गए प्रीमियम के दाम की पूर्ति हो जाए।

3. निवेशक C इन्फोसिस के दाम कम होने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन, उसको पक्का विश्वास है कि ग्लोबल मार्केट के प्रेशर के कारण, इन्फोसिस का दाम 1080 पार नहीं करेगा। वह इन्फोसिस का 1100 कॉल ऑप्शन बेच सकता है और सम्पूर्ण प्रीमियम समेट सकता है।

4. निवेशक D इन्फोसिस के दाम के चढ़ने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन उसको पक्का विश्वास है कि इन्फोसिस में हाल में हुए प्रबंधन परिवर्तनों के कारण स्टॉक का दाम रु. 920 से कम नहीं होगा। उसके लिए एक क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? बेहतर कार्य नीति होगी अगर वो 900 पुट ऑप्शन बेच दे और सारा प्रीमियम ले जाए।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की अवधारणा अलग है लेकिन आंतरिक रूप से वे एक ही हैं क्योंकि दोनों पूर्ण राशि का निवेश किए बिना स्टॉक या इंडेक्स से लाभ कमाने की कोशिश करते हैं!

Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते है मुनाफा

हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है।

अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।

Futures Calendar Spread क्या है?

Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और बेचें जा सकते है। दोनों क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।

Spread स्ट्रैटेजी के फायदे

लॉन्ग या शॉर्ट टर्म के मुकाबले Volatility काफी कम होती है। कैपिटल पर कम मार्जिन के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है। Calendar Spread में Directional Risk नहीं होता है। Spread में भाव पर सिर्फ डिमांड-सप्लाई का असर होता है। Money Flow या अन्य बाहरी प्रभाव का असर इसपर नहीं होता है।

माइक्रोसॉफ्ट ब्राउजर के लिए सरकार ने जारी की 'हाई-रिस्क' वार्निंग, क्या आप भी करते हैं इस्तेमाल

'high-risk' warning for Microsoft browser: किसी भी तरह की दिक्कत से बचने के लिए CERT-In ने सलाह दी है. इसने कहा है कि इस ब्राउजर के यूजर्स 98.0.1108.43 वर्जन में अपडेट करें. पिछले सप्ताह माइक्रोसॉफ्ट ने इसे रोल आउट किया था.

क्रोमियम प्रोजेक्ट के तहत इसमें लेटेस्ट सुरक्षा अपडेट शामिल किए गए हैं. (फाइल फोटो: पीटीआई)

'high-risk' warning for Microsoft browser: अगर आप भी माइक्रोसॉफ्ट ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं तो अलर्ट हो जाएं. सरकार ने इसे लेकर 'हाई-रिस्क' वार्निंग जारी की है. आईटी मंत्रालय के तहत भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In) ने इसके लिए चेतावनी दी है.

यह उन यूजर्स के लिए है जो 98.0.1108.43 से पहले के ब्राउजर वर्जन (version) का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके मुताबिक, इस ब्राउजर में कमजोरियों (vulnerabilities) हैं. जिसकी वजह से एक रिमोट अटैकर सिक्योरिटी प्रतिबंधों को बायपास कर सकता है. वहीं यह मनमाने कोड के जरिए और टारगेटेड सिस्टम को निशाना भी बना सकता है.

सरकार ने जारी की एडवाइजरी
एडवाइजरी में आगे कहा गया है कि "अनुचित इनपुट वैलिडिएशन की वजह से इसमें ये कमजोरियां हैं. एक रिमोट अटैकर पीड़ित को विशेष रूप से तैयार की गई फाइल खोलने के लिए लुभाकर इसका फायदा उठा सकता है." इसके जरिए दूर बैठा अटैकर सुरक्षा प्रतिबंधों को बायपास कर, बढ़त हासिल कर सकता है. वहीं विशेषाधिकारों और लक्षित सिस्टम पर मनमाना कोड डाल सकता है.

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सुरक्षित रहने के लिए यूजर्स क्या कर सकते हैं?
किसी भी तरह की दिक्कत से बचने के लिए CERT-In ने सलाह दी है. इसने कहा है कि इस ब्राउजर के यूजर्स 98.0.1108.43 वर्जन में अपडेट करें. पिछले सप्ताह माइक्रोसॉफ्ट ने इसे रोल आउट किया था. क्रोमियम प्रोजेक्ट के तहत इसमें लेटेस्ट सुरक्षा अपडेट शामिल किए गए हैं.

ब्राउजर अपडेट करने की सलाह
98 वर्जन कुछ सुधारों और नई फीचर्स के साथ आया है. नवीनतम अपडेट के साथ इसमें बेहतर सुरक्षा मोड को जोड़ा है. जिसके तहत बनाएं जहां ब्राउजर सिक्योरिटी को प्राथमिकता दी गई है. वहीं इससे यूजर्स को ब्राउज करते समय वेब पर सुरक्षा की एक और लेयर मिलती है. कंपनी पिछले कुछ समय से इस एडिशन की टेस्टिंग कर रही है. यह सुविधा वर्तमान में एक ही फ्लैग के नीचे है और इसे edge://flags पर जाकर सक्षम (enabled) किया जा सकता है. एडमिनिस्ट्रेटर इसके लिए ग्रुप पॉलिसी अप्लाई कर सकते हैं, जिससे उनका सिस्टम सेफ रहे.

Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते है मुनाफा

हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है।

अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।

Futures Calendar Spread क्या है?

Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और बेचें जा सकते है। दोनों सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।

Spread स्ट्रैटेजी के फायदे

लॉन्ग या शॉर्ट टर्म के मुकाबले Volatility काफी कम होती है। कैपिटल पर कम मार्जिन के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है। Calendar Spread में Directional Risk नहीं होता है। Spread में भाव पर सिर्फ डिमांड-सप्लाई का असर होता है। Money Flow या अन्य बाहरी प्रभाव का असर इसपर नहीं होता है।

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